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समये प्राप्त है इस लिये श्रुतज्ञान सत्य नहीं होता. वास्ते नयज्ञान की जरुरत है. यद्यपि केवली का उपयोग एक समय का है इसलिये उनको जानने के वास्ते नयकी जरुरत नहीं पडती परन्तु बचन से कहने के लिये केवली को नय सहित बोलना पडता है क्योंकि वचन अनुक्रम से बोला जाता है और वस्तु धर्म एक समय अनंत हैं. वास्ते नय सहित बोलते हैं. पूज्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण भी कहते हैं. ___ जीवादि द्रव्य में जो गुण है वह अनन्त स्वभावी है. गुणकी अस्तिता उसका परिणमन, प्रवृत्ति और उसमें जिस समय कारणता उसी समय कार्यता इत्यादि अनेक परिणति सहित है. उन सब का किसी रीतीसे भिन्न २ पने ज्ञान हो तो वह नयसे होता है वास्ते संम्यक्त्व रुची जीव को नय सहित ज्ञान करना चाहिये. अनेक धर्म सब द्रव्य में रहे हैं. वास्ते पहिले गुरु कृपासे द्रव्यगुण पर्याय की पहिचान करवाते है ( यह पीठिका कही आगे मूल सूत्र के अर्थकी व्याख्या करते हैं. )
लेखक. ग्रन्थकर्ता.
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