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________________ नयस्वरूप. (१३१) प्रश्न-इस शब्दार्थ से तो ऋजुसूत्रनय और शब्दनय एकही प्रतीत होता है. उत्तर- विशेषावश्यक में कहा हैं. " कारण यावत् ऋजु सूत्रः " ज्ञान कारणरूप प्रवर्तता हुवा ऋजुसूत्रनय प्राही है- और वही ज्ञायकता-जाननारूप काय में प्रवर्तमान होने से उसको शब्द. नय कहते हैं. वर्तमानकाल अपलापी को ऋजुसूत्राभास कहते है. जैसे बस्ति भाव को नास्तिभाव कहे अथवा विपरीत भाव से कहे यथा जीव को अजीव कहे, अजीव को जीव कहे इत्यादि यह गतबौद्धदर्शन का मन्तव्य है बे जीव द्रव्य सदा सर्वदा अस्तिरूप है जिसको पर्याय के पलटने से द्रव्य का सर्वथा विनाश मानते हैं यह ऋजुसूत्रनयामास हैं इति ऋजुसूत्रनयः । ___एकपर्यायपागभावेन तिरोभाविपर्यायग्राहकः शब्दनयः, कालादिभेदन ध्वनेरर्थभेदं प्रतिपाद्यमानः शब्दः, जलाहरणादिक्रियासामर्थ एव घटः न मृपिन्डादौ तत्त्वार्थवृत्तौ शब्दवशा दर्थप्रतिपत्तिः तत्कार्येधमें वर्तमानवस्तु तथामन्वानः शब्दनयः शब्दानुरूपं अर्थपरिणतं द्रव्यमिच्छति त्रिकालत्रिलिंग त्रिवः चनप्रत्ययप्रकृतिभिः समन्वितमर्थमिच्छति तदभेदे तस्य तमेव समर्थमाणस्तदाभासः। . अर्थ-शब्दनय कहते है. ॥ वस्तु की एक पर्याय प्रगट दिखने से और दूसरे शब्दवाचक पर्याय के तिरोभाव-अप्रगट होने पर भी उस पर्याय को ग्रहण करता है. अथवा तीन काल
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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