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नयचक्रसार हि० अ०. मानस्यैव वस्तुत्वमिति अतीतस्य कारणात् । अनागतस्थ कार्यता जन्यजनकभावेन प्रवर्तते अतः अजुमूत्रं वर्तमानग्राहकं तद् वर्तमानं नामादिचतुःप्रकारं ग्राह्यम् ॥
अर्थ---ऋजुसूत्र नय का स्वरूप कहते हैं. ऋजु-सरल श्रुत-बोध उसको ऋजुसूत्रनय कहते हैं. ऋजु शब्दसे अवक्र अर्थात् सम है श्रुत उसको ऋजुसूत्र कहते है. या ऋजु-अवक्रपने वस्तु को जाने उसको ऋजुसूत्र कहते हैं. अब वस्तुका वक्रपना समझाते हैं. वर्तमानकाल में जो वस्तु है वह ऋजुसूत्र नय ग्राही है. अन्य जो अतीत अनागतरूप वस्तु है वह ऋजुसूत्र की अपेक्षासे नास्ति है अर्थात् असत्य है क्यों कि अतीतकाल तो विनास हो गया और अनागतकाल आया नहीं है इसवास्ते अतीत, अनागत वस्तु अवस्तुरूप है. और जो वर्तमान पर्यायसे है वह वस्तु है. पूर्व और पश्चातकाल ग्राही नैगमनय है.
प्रश्न- संसारी जीवों को सिद्धसमान कहते हो. और अनागत काल में सिद्ध हो गये हैं. तो आप अतीत अनागतकाल को अवस्तु क्यों कहते हो ?
उत्तर-हे भद्रे ! अनागत भावीकेलिये नहीं कहते हैं. किन्तु-वर्तमान में सर्वगुणों का आत्मप्रदेशो में सद्भाव है. परन्तु उनगुणों की आवर्णदोषसे प्रवृत्ति नहीं है. इसलिये तिरोभावीपना संग्रह करके कहा है. परन्तु वस्तु में केवलज्ञानादि सब गुणों का सद्भाव है. इसलिये उनको सिद्ध कहा है.