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उपासकाध्ययन
३५वाँ कल्प देवपुजनके दो प्रकार, आप्तका संकल्प अन्यमतको प्रतिमामें नहीं करना चाहिए, . पुष्पादिकमें जिन देवकी स्थपना करनेवालोंके । लिए पूजाविधि, पञ्चपरमेष्ठी तथा रत्नत्रयको स्थापनाकी विधि, अर्हन्तका पूजन, सिद्धोंका पूजन, आचार्यपरमेष्ठोका पूजन, उपाध्यायपरमेष्ठी पूजन, साधुपरमेष्ठी पूजन, सम्यग्दर्शन पूजन, सम्यग्ज्ञान पूजन, सम्यक् चारित्र पूजन, दर्शन भक्ति, ज्ञान भक्ति, चारित्र भक्ति, अर्हद् भक्ति, सिद्ध भक्ति, पेट्य भक्ति, पञ्चगुरुभक्ति, शान्तिभक्ति, आचार्य भक्ति २१७-२३३ ३६वाँ कल्प प्रतिमा स्थापना करनेवालोंके लिए पूजा- .. विधि, पूजकको उत्तराभिमुख और जिन- .. प्रतिमाको पूर्वाभिमुख स्थापनका विधान, देवपूजाके छह प्रकार, प्रस्तावना, पुराकर्म, स्थापना, सन्निधापन, पूजन, पूजाफल २३३-२४१ ३७वाँ कल्प जिनस्तुति
२४२-२४९ ३त्रा कल्प जपविधि, जपका मन्त्र, जपकी माला वगैरह, मनसे वा वचनसे जपका विधान, पैंतीस . . अक्षरके मन्त्रको मुनि भी जपते हैं, पैंतीस अक्षरके मन्त्रका माहात्म्य, जपने की विधि, इसके समान कोई मन्त्र नहीं २४९-२५२ ३६वाँ कल्प ध्यानविधि, पद्मासन या खड्गासनसे स्थित होकर श्वासोच्छवासको मन्द करके पत्थरको । मतिके समान निश्चल होकर ध्यान करना। चाहिए. ध्यान, ध्याता और ध्येयका स्वरूप, ध्यानके योग्य स्थान, सबीज ध्यानका स्वरूप, अबीज ध्यानका स्वरूप, ध्यानकी दुर्लभता, ध्यानका काल, योगके पांच हेतु, योगके अन्तराय, ध्यानीको समभावी होना चाहिए, हट्योगकी प्रक्रियाका निराकरण, जो इन्द्रियासक्त है वह भी क्या योगी हो सकता है, ध्यानोको समधी होना चाहिए, वचनको
वशमें रखना चाहिए, आर्त और रोद्रध्यानका स्वरूप, तथा उनको त्यागने का उपदेश, दोनों ध्यानोंको बुराइयाँ, धर्मध्यानका स्वरूप आज्ञाविचय धर्मध्यानका स्वरूप, अपायविचयका स्वरूप, लोकविचयका स्वरूप, विपाकविचयका स्वरूप, धर्मध्यानका फल, शुक्लध्यानका स्वरूप, मोक्षका स्वरूप, ध्यान करनेके योग्य, ध्यानीका विचार, अर्हन्त देवका ध्यान करने योग्य स्वरूप, ध्यान करनेसे लाभ, पूजाविधानमें व्यन्तरादिक देवताओंको अहंन्तके समान माननेवाला मनुष्य नरकगामी होता है, शासनको रक्षाके लिए, उनकी कल्पना की गयी है, निष्काम होकर धर्माचरण करो, पञ्चनमस्कार मन्त्र जपको विधि तथा महत्त्व, इस मन्त्रके ध्यानसे समस्त उपद्रव शान्त हो जाते हैं, लौकिक ध्यानका वर्णन, लौकिक ध्यानकी विधि, ध्यानका माहा
म्य, जीव और शिवमें अन्तर, ध्यानके विषय में प्रश्न और उत्तर, शरीर और आत्माकी भिन्नतामें उदाहरण, दहीसे घीकी तरह यह आत्मा शरीरसे भिन्न किया जा सकता है, शरीर ही योगियोंका घर है, योगियोंका मन उससे बाहर नहीं जाता, इन्द्रियोंसे आकृष्ट आत्मा ध्यान नहीं लगता, आप्तस्वरूपके ध्यानकी प्रेरणा, पद्मासन, वीरासन और सुखासनका लक्षण, ध्यानको विधि २५२-२८४ ४०वाँ कल्प शास्त्रपूजनका अष्टक
२८५-२८७ ४१वाँ कल्प प्रोषधोपवासका स्वरूप, उपवासको विधि, उपवासके दिन आरम्भ नहीं करना, प्रोषधोपवासके अतीचार, कायक्लेशके बिना आत्मा विशुद्ध नहीं होता
२८८-२९० ४२वाँ कल्प भोग और परिभोगका लक्षण, यम और नियमका लक्षण, भोग-परिभोग-परिमाणवतीको सूरण आदि खानेका निषेध, भोग-परिभोगवतके अतीचार
२९१-२९२
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