SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ श्रीमद् राजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् । [ सम्यक् चारित्र वर्णन ३ उभयाचार' - अर्थ और शब्द दोनोंसे शुद्ध पठन-पाठन करने को कहते हैं । ४ कालाचार - गोसर्गकाल २, प्रदोषकाल, प्रदोषकाल", और विरात्रिकाल इन चार उत्तम कालों में पठन-पाठनादिरूप स्वाध्याय करनेको कालाचार कहते हैं। चारों संध्यायोंकी ग्रन्तिम दो दो घड़ियोंमें, दिग्दाह, उल्कापातं, वज्रपात, इन्द्रधनुष, सूर्य-चन्द्रग्रहण, तूफान, भूकम्प आदि उत्पातोंके समय में, सिद्धान्त-ग्रन्थोंका पठन-पाठन वर्जित है । हाँ स्तोत्र, प्राराधना, धर्मकथादिक ग्रन्थ बाँच सकते हैं । ५ विनयाचार - शुद्ध जलसे हाथ पाँव धोकर शुद्ध स्थान में पर्यङ्कासन बैठकर नमस्कारपूर्वक शास्त्राध्ययनको कहते हैं । ६ उपधानाचार — उपधान सहित प्राराधन करनेको अर्थात् विस्मृत न हो जानेको कहते हैं । ७ बहुमानाचार – ज्ञान, पुस्तक और शिक्षकका पूर्ण आदर करनेको कहते हैं । ८ निवाचार - जिस गुरुसे जिस शास्त्रसे ज्ञान उत्पन्न होवे उसको गोपन न करनेको कहते हैं । इति श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचिते पुरुषार्थसिद्धयुपाये अपरनाम जिनप्रवचन रहस्यकोषे सम्यग्ज्ञानवर्णनो नाम द्वितीयोऽधिकारः । ३ सम्यक्चारित्रव्याख्यान । विगलितदर्शन मोहैः समञ्जसज्ञानविदिततत्वार्थेः । नित्यमपि निःप्रकम्पैः सम्यक्चारित्रमालम्व्यम् ॥ ३७ ॥ श्रन्वयार्थी - [ विगलितदर्शनमो है: ] दर्शनमोह जिन्होंने नष्ट कर दिया है, [ समञ्जसज्ञानविदिततस्वार्थे: ] सम्यग्ज्ञानसे जिन्हें तत्त्वार्थ विदित हुआ है, [ नित्यमपि निःप्रकम्पैः ] जो सदाकाल कम्प अर्थात् दृढ़चित्त हैं, ऐसे पुरुषोंद्वारा [ सम्यक्चारित्रम् ] सम्यक्चारित्र [ श्रालम्ब्यम् ] अवलम्बन करने योग्य है । भावार्थ - सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् सम्यक्चारित्र अंगीकार करना चाहिये । -उभयाचारको शब्द अर्थसे पृथक् करके तीसरा भेद माननेका कारण यह है, कि कहीं कहीं केवल ग्रन्यसे ही ज्ञानकी अराधना होती है, जैसे दशाध्यायसूत्र तथा भक्तामरादिस्तोत्रोंके पाठमात्रसे और कहीं कहीं केवल अर्थसे ही जैसे, शिवभूति मुनि 'शरीरसे आत्मा तुषमाषकी तरह भिन्न है, ' केवल यह जानकर कल्याणको प्राप्त हुए । २ - मध्याह्नसे दो घड़ी पहिले और सूर्योदयसे दो घड़ी पीछे । ३- मध्याह्नसे दो घड़ी पश्चात् और रात्रिसे दो घड़ी पहिले । ४ - रात्रि से दो घड़ी उपरान्त और मध्यरात्रिसे दो घड़ी पहिले । ५- मध्यरात्रिसे दो घड़ी पश्चात् और सूर्योदयसे दो घड़ी पहिले ।
SR No.022412
Book TitlePurusharth Siddhyupay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1977
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy