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नमः सर्वज्ञाय । श्रीमद्राजचन्द्रजनशास्त्रमाला श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचित
पुरुषार्थसिद्धयुपाय
सरल भाषानुवाद सहित ।
मंगलाचरण' -- दोहा-परम पुरुष निज प्रर्षको, साध भये गुणवृन्द ।
प्रानन्दामृतचन्द्रको, बन्दत हूँ सुखकन्द ॥१॥ बानी बिन बैन न बने, बैन बिना बिन नैन । नैन बिना बानि न बने, नवों बानि बिन बैन ॥ २ ॥ गुरु उर भाव प्राप पर, तारक वारक पाप । सुरगुर गावं प्राप पर, हारक वाच कलाप ॥ ३ ॥ मैं नमो नगन जैन जिन, ज्ञान ध्यान धन लीन । मैनमान बिन दान धन, एनहीन तन छीन ॥ ४ ॥
कवित्त-( मनहरण ३१ वर्ण ) कोऊ नय-निश्चयसे प्रातमाको शुद्ध मान, भये हैं सुछन्द न पिछाने निज शुद्धता। कोऊ व्यवहार दान शील तप भावको ही, मातमको हित जान छांडत न मुद्धता ॥ कोऊ व्यवहारनय मिरचयके मारमको, भिन्न भिन्न पहिचान कर मिन उद्धता । जब जाने निश्चयके भेव व्यवहार सब, कारण है उपचार मानें तब बुद्धता ॥५॥ दोहा-श्रीगुरु परमदयाल हूं, दियो सत्य उपदेश ।
__ ज्ञानी माने जानके, ठाने मूढ़ कलेश ॥६॥
१-भाषाकार स्व. पं० टोडरमलजी रचित ।