________________
१८१५ में जयपुर आ गये । पिताजीकी मृत्यु हो गई और तब गृहस्थीका भार उनपर आ पड़ा। सम्बत् १८१६ में उनके हरिश्चन्द्र और १८१८ में गुमानीराम नामक पुत्रोंका जन्म हुमा। १८१८ में गोम्मटसार आदिकी सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका टीकाका संशोधन कार्य पूर्ण हुा । मोक्षमार्गप्रकाशका प्रारंभ १८१६ के लगभग हुअा होगा। उनकी गोम्मटसार, क्षपणासार-लब्धिसार, त्रिलोकसार और प्रात्मानुशासन इन चार ग्रन्थोंकी भाषाटीकायें प्रसिद्ध हैं। पुरुषार्थसिद्धय पायकी टीका अधूरी है। साम्प्रदायिकताके मदसे उन्मत्त षड्यंत्रकारियोंने इस महान् विद्वानकी हत्या कर डाली।
पं० भूधर मिश्र आगराके समीप शाहगंजके निवासी ब्राह्मण थे। मापके गुरुका नाम पं० रंगनाथ था। सं० १८७१ की भादों सुदी १० को अपने पुरुषार्थसिद्धय पाय-टीका पूर्ण की थी। आप बड़े विद्वान् थे, इस टीकामें यशस्तिलकचम्पू, रयणसार, धर्मोपदेशपीयूष श्रावकाचार, प्रबोधसार, योगीन्द्रदेवकृत श्रावकाचार, यत्याचार आदि अनेक प्रन्थोंके प्रमाण यथावसर दिये हैं। प्रापका लिखा हुआ 'चरचा-समाधान' नामक प्रन्थ भी प्रसिद्ध है।
मूलग्रन्थकर्ता प्राचार्य अमृतचन्द्रका परिचय मेरे लिखे हुए 'जैन साहित्य और इतिहास' से उद त कर दिया जाता है। हीराबाग, बम्बई, ता. १-३-५३
-नाथूराम प्रेमी