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________________ श्रीमद् राजचन्द्रजनशास्त्रमालायाम् [ ४-सम्यग्दर्शन और अहिंसाव्रतके प्रतीचार छेदनताडनबन्धाः' भारस्यारोपरणं समधिकस्य । पानानयोश्च रोधः पञ्चाहिंसावतस्येति ॥१८३॥ अन्वयाथी-[ अहिंसावतस्य ] अहिंसा व्रतके । छेदनताडनबन्धाः ] छेदना, ताड़न करना, बांधना, [ समधिकस्य ] अतिशय अधिक [ भारस्य ] बोभे.का [प्रारोपणं ] लादना, [च ] और [पानानयोः [ अन्न पानीका [ रोधः ] रोकना अर्थात् न देना [ इति ] इस प्रकार [ पञ्च] पांच प्रतीचार हैं। भावार्थ-किसी जीवका छेदन अर्थात् उसके हस्त पादादि अङ्ग अथवा नाक, कान आदि उपाङ्ग काटना व छेदना, ताड़न लकड़ी कोडा आदिसे मारना, बंधन स्वेच्छापूर्वक गमन करनेवालोंका रस्सी प्रादि बाँधकर रोक रखना, प्रतिभारारोपण जीवधारी जितना बोझा उठा सके उससे अधिक लाद देना और अन्नपाननिरोध अर्थात् खाने पीनेको न देकर उन्हें भूखे प्यासे रखना, ये अहिंसावतके पाँच प्रतीचार हैं। पर्थात् इनसे व्रतका एकोदेश भंग होकर अहिंसाव्रत में दोष लगता है। मिथ्योपदेशदान रहसोऽभ्याख्यानकट लेख कृती। न्यासापहारवचनं साकारमन्त्रभेदश्च ।।१८४॥ अन्वयार्थी-[मिथ्योपदेशदानं] झूठा उपदेश देना, [रहतोऽभ्याख्यानकूटलेखकृती] एकान्तको गुप्तबातोंका प्रकट करना, झूठा लिखना, [ न्यासापहारवचनं ] धरोहरके (थातीके) हरण करनेका वचन' कहना [च ] और [ साकारमन्त्रभेदः ] कायकी चेष्टाओंसे जानकर दूसरेका अभिप्राय प्रकट कर देना, ये पांच सत्याणुव्रतके अतीचार हैं। प्रतिरूपव्यवहारः स्तेननियोगस्तदाहतादानम् । राजविरोधातिक्रमहीनाधिकमानकरण च ।। १८५।। अन्वयाथों-[प्रतिरूपव्यवहारः] प्रतिरूप व्यवहार अर्थात् चोखी वस्तुमें खोटी वस्तु मिलाकर बेचना, [ स्तेननियोगः ] चारीमें नियोग देना अर्थात् चोरी करनेवालोंको सहायता देना, [ तदाहुतादानम् ] चोरके द्वारा हरण की हुई वस्तुका ग्रहण करना, [च ] और [ राजविरोधातिक्रमहीनाधि. कमानकरणे ] राजाके प्रचलित किये हुए नियमोंका उल्लङ्घन करना; नापने तौलनेके गज, वाँट, पाई, तराजू आदिके मान हीनाधिक करना, (एते पञ्चास्तेयव्रतस्य] ये पांच प्रचौर्यव्रतके प्रतीचार हैं। १-'बन्धबधच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः' (त० सू० प्र० ७, सू० २५)। २-'मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूट लेखत्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः' (त० सू० अ० ७, मू० २६)। ३-सीपुरुषोंके एकान्त में किये हुए कार्य। ४-कोई पुरुष कुछ द्रव्य धरोहर रखकर अवधि बीत जानेपर फिर लेनेको प्रावे और धरोहर द्रव्यकी संख्या भलकर थोडी मानने लगे, तो उससे इस प्रकार कहना कि, जितना तू रख गया है ले जा। इस प्रकार जान बुझ करके पूरा द्रब्य न देना, ५-'स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रति रूपकव्यवहाराः' । त० सू• अ०७, सू० २७)।
SR No.022412
Book TitlePurusharth Siddhyupay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1977
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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