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[ १८ ] अर्थ-यदि कोई स्त्री सम्यग्दर्शन से शुद्ध है तो मोक्षमार्ग में लगी हुई है ।
कठिन तपश्चरणादि चारित्र धारण करती है, इसलिये सोलहवें स्वर्ग तक जाती है, किन्तु उनके मोक्ष प्राप्ति के योग्य दीक्षा नहीं हो सकती ॥२॥
गाथा- चित्तासोहि ण तेसिं ढिल्लं भावं तहा सहावेण ।
विज्जदि मासा तेसिं इत्थीसु ण संकया झाणा ॥ २६॥ छाया- चित्ताशोधि न तासां शिथिलो भावः तथा स्वभावेन ।
विद्यते मासा तासां स्त्रीषु नाशंकया ध्यानम् ॥ २६ ॥ अर्थ-स्त्रियों का मन शुद्ध नहीं होता, उनके परिणाम स्वभाव से शिथिल होते हैं
और प्रत्येक महीने में रुधिरस्राव (मासिकधर्म) होता रहता है । इस कारण स्त्रियों में शंकारहित ध्यान नहीं होता, और इसीलिये मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं हो सकती ॥ २६ ॥
गाथा- गाहेण अप्पगाहा समुद्दसलिले सचेलअत्थेण ।
इच्छा जाहु णियत्ता ताह णियत्ताई सव्वदुक्खाई ॥२७॥ छाया- ग्राह्यण अल्पग्राह्याः समुद्रसलिले स्वचेलार्थेन ।
इच्छा येभ्यो निवृत्ता तेषां निवृत्तानि सर्वदुःखानि ॥२७॥ अर्थ-जो मुनि ग्रहण करने योग्य आहारादि को भी थोड़ी मात्रा में ग्रहण करते
हैं, जैसे कोई पुरुष समुद्र के जल में से केवल अपना वस्त्र धोने के लिए जल प्रहण करता है। इसी प्रकार जिन मुनियों की इच्छा दूर हो गई है, उनके सब दुःख दूर हो गये हैं ॥ २७ ।।
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