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लब्धिसारः।
११
पृ
पं.
विधान
...
विषय.
पृ. पं. | विषय. पार्श्वकृष्टिका कथन ... ... १३६१५०० केवलीके इंद्रियजनित सुख दुःख नहीं कृष्टिवेदनाका कथन १३८१५०० होनेमें हेतु
१६३१६१२ संक्रमणद्रव्यका विधान ... १४११५१९ दूसरा हेतु ...
१६३१६१३ अनुसमय अपवर्तनकी प्रवृत्तिका
| केवलीके आहारमार्गणा होनेमें कारण १६४।६१४ कथन
... १४१।५२० | समुद्धातक्रियाका वर्णन ... ... १६४।६१६ खस्थान परस्थान गोपुच्छ रचनाका
समुद्धातके पहले केवलीके आवर्जित१४२१५२३ करण होता है ...
१६५।६१७ दूसरा विधान ...
.. १४२१५२४ आवर्जितकरणमें गुणश्रेणी आयामका क्षीणकषाय नामा बारहवें गुणस्थानका
कथन ...
१६५।६१९ खरूप ... ।५९६ उस समुद्धातमें कार्य विधान
१६६।६२० पुरुषवेदसहित श्रेणी चढ़नेवालेका
समुद्धातक्रियाके समेंटनेका क्रम ... १६६।६२३ ।६००
बादरयोगोंका सूक्ष्मरूप परिणमन होनेस्त्रीवेद सहित चढ़े जीवोंके मेदोंका
की अवस्था ... ... १६७१६२५ वर्णन
।६०२ अयोगकेवलीका कथन ... ... १७११६४२ नपुंसकवेद सहित चढ़े जीवोंका कथन ।६०३ चौदहवें गुणस्थानके अंतसमयसे पहक्षीणकषाय गुणस्थानके अंतसमयका
लेमें तथा अंतसमयमें पचासी प्रकृकथन ... ... ... ।६०५] तियोंका (कर्मोका) नाश करनेका सयोगकेवली गुणस्थानका वर्णन ... १६२१६०६ कथन ... .... ... १७२१६४४ चार घातियोंके क्षयसे चार गुणोंका
ऊर्ध्वलोकके ऊपर मोक्षस्थानका खरूप १७२१६४५ प्रगट होना ... १६२।६०७ इष्ट प्रार्थना ... ...
१७३।६४७ दुःखका लक्षण १६३१६१० ग्रंथकर्ताकी प्रशस्ति ..
१७४।६४८ इंद्रियजनित सुखका लक्षण १६३१६११ अंतमंगल
१७५४६४९
खरूप
...
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इति विषयसूची.