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लब्धिसारः।
१२३ अर्थ-सात नोकषायोंका पहला स्थितिकांडक पूर्ण होनेपर पूर्वस्थितिसत्त्वसे मोहका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणाकम है और शेष कर्मोंका स्थितिसत्त्व असंख्यातगुणा कम है ॥ ४४५॥
सत्तण्हं पढमट्ठिदिखंडे पुण्णेति घादिठिदिबंधो। संखेजगुणविहीणं अघादितियाणं असंखगुणहीणं ॥ ४४६॥ सप्तानां प्रथमस्थितिखंडे पूर्णे इति घातिस्थितिबंधः।
संख्येयगुणविहीनो अघातित्रयाणामसंख्यगुणहीनः ॥ ४४६ ॥ अर्थ-सात नोकषायोंके प्रथमस्थितिखंड पूर्ण होनेपर पूर्वस्थितिबन्धसे चार घातियाओंका तो संख्यातगुणा घटता और तीन अघातियाकर्मोंका असंख्यातगुणा घटता स्थितिबन्ध होता है ॥ ४४६॥
ठिदिबंधपुछत्तगदे संखेजदिमं गतं तदद्धाए । एत्थ अघादितियाणं ठिदिबंधो संखवस्सं तु ॥ ४४७॥ स्थितिबंधपृथक्त्वगते संख्येयं गतं तदद्धायाम् ।
अत्र अघातित्रयाणां स्थितिबंधः संख्यवर्षस्तु ॥ ४४७ ॥ अर्थ-उसके वाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध वीतजानेपर उस सात नोकषायक्षपणाकालका संख्यातवां भाग वीतजानेसे नामगोत्र वेदनीयरूप तीन अघातियाओंका स्थितिबंध संख्यातहजार वर्षमात्र होता है ॥ ४४७ ॥
ठिदिखंडपुधत्तगदे संखा भागा गदा तदद्धाए। घादितियाणं तत्थ य ठिदिसंतं संखवस्सं तु ॥४४८ ॥ स्थितिखंडपृथक्त्वगते संख्या भागा गता तदद्धायाः।
घातित्रयाणां तत्र च स्थितिसत्त्वं संख्यवर्ष तु ॥ ४४८॥ अर्थ-उसके वाद संख्यातहजार स्थितिकांडक वीतनेपर सात नोकषायकालका संख्यातबहुभाग वीतनेसे एक भागमें तीनघातियाओंका स्थितिसत्त्व संख्यात वर्षमात्र होता
पडिसमयं असुहाणं रसबंधुदया अणंतगुणहीणा । बंधोवि य उदयादो तदणंतरसमय उदयोथ ॥ ४४९ ॥
प्रतिसमयमशुभानां रसबंधोदयौ अनंतगुणहीनौ ।
बंधोपि च उदयात् तदनंतरसमय उदयोथ ॥ ४४९ ॥ अर्थ-अशुभप्रकृतियोंका अनुभागबन्ध और अनुभाग उदय समय समय प्रति अनन्त