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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। स्त्री अद्धा संख्येयभागेपगते त्रिघातिस्थितिबंधः ।
वर्षाणां संख्येयं स्त्री संक्रमोपगतार्धाते ॥ ४४१ ॥ अर्थ-स्त्रीवेद क्षपणाकालका संख्यातवां भाग वीतनेपर ज्ञानावरण दर्शनावरण अन्तराय इन तीन घातियाओंके स्थितिबन्धको संकोचकर संख्यातवर्षप्रमाण स्थितिबन्ध करता है । उसके वाद स्त्रीवेदका स्थितिसत्त्व अन्तस्थितिकांडकरूप करता है ॥ ४४१ ॥
ताहे संखसहस्सं वस्साणं मोहणीयठिदिसंतं । से काले संकमगो सत्तण्हं णोकसायाणं ॥ ४४२॥ तस्मिन् संख्यसहस्रं वर्षाणां मोहनीयस्थितिसत्त्वम् ।
वे काले संक्रामकः सप्तानां नोकषायाणाम् ॥ ४४२ ॥ अर्थ-स्त्रीवेद क्षपणाकालके अन्तमें मोहनीयका स्थितिसत्त्व असंख्यातवर्षप्रमाण है । उसके बाद अपने कालमें सात नोकषायोंका संक्रामक होता है यानी संज्वलनक्रोधरूप परिणामके नाश करनेवाला होता है ॥ ४४२ ॥
ताहे मोहो थोवो संखेजगुणं तिघादिठिदिबंधो। तत्तो असंखगुणियो णामदुगं साहियं तु वेयणियं ॥ ४४३॥
तत्र मोहः स्तोकः संख्येयगुणं त्रिघातिस्थितिबंधः। ___ ततोऽसंख्येयगुणितं मामद्विकं साधिकं तु वेदनीयम् ॥ ४४३ ॥ अर्थ-उसी जगह प्रथमसमयमें मोहका स्थितिबन्ध थोड़ा है, उससे तीन घातियोंका संख्यातगुणा, उससे नाम गोत्रका असंख्यातगुणा और वेदनीयका साधिक स्थितिबन्ध होता है ॥ ४४३ ॥
ताहे असंखगुणियं मोहादु तिघादिपयडिठिदिसंतं । तत्तो असंखगुणियं णामदुगं साहियं तु वेयणिये ॥ ४४४ ॥ तस्मिन् असंख्यगुणितं मोहात् त्रिघातिप्रकृतिस्थितिसत्त्वम् ।
ततो असंख्यगुणितं नामद्विकं साधिकं तु वेदनीयं ॥ ४४४ ॥ अर्थ-उसी प्रथमसमयमें संख्यातवर्षमात्र मोहका स्थितिसत्त्व थोड़ा है उससे असंख्यातगुणा तीनघातियाओंका स्थितिसत्त्व है उससे असंख्यातगुणा नाम गोत्रका स्थितिसत्त्व है उससे साधिक वेदनीयका स्थितिसत्त्व है ॥ ४४४ ॥
सत्तण्हं पढमठिदिखंडे पुण्णे दु मोहठिदिसंतं । संखेजगुणविहीणं सेसाणमसंखगुणहीणं ॥ ४४५॥
सप्तानां प्रथमस्थितिखंडे पूर्णे तु मोहस्थितिसत्त्वं । संख्येय गुणविहीनं शेषाणामसंख्यगुणहीनम् ॥ ४४५ ॥