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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। रका चौंसठवर्ष, तीनघातियाओंका संख्यात हजार वर्ष, उससे संख्यातगुणा नामगोत्रका और उससे ड्योढा वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है ॥ ३२१ ॥
पुरिसे दु अणुवसंते इत्थी उवसंतगोत्ति अद्धाए । संखाभागासु गदेससंखवस्सं अघादिठिदिबंधो ॥ ३२२ ॥
पुरुषे तु अनुपशांते स्त्री उपशांतका इति अद्धायाः ।
संख्यभागेषु गतेष्वसंख्यवर्ष अघातिस्थितिबंधः ॥ ३२२ ॥ अर्थ-पुरुषवेदके उदयकालमें स्त्रीवेदका जबतक उपशम काल रहे तब तकके कालके संख्यात बहुभाग वीतनेपर एकभाग शेष रहे अघातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यात हजार वर्षमात्र होता है ॥ ३२२॥
णवरि य णामदुगाणं वीसियपडिभागदो हवे बंधो। तीसियपडिभागेण य बंधो पुण वेयणीयस्स ॥ ३२३ ॥
नवरि च नामद्विकयोः वीसियप्रतिभागतो भवेत् बंधः ।
तीसियप्रतिभागेन च बंधः पुनः वेदनीयस्य ॥ ३२३ ॥ अर्थ-वहां इतना विशेष है कि नामगोत्रका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध है इतना वीसियोंका है । इसहिसावसे तीसिय वेदनीयका डेढगुणा पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध है । और तीन घातियाओंका संख्यात हजार वर्षमात्र, उससे संख्यात. गुणा कम संख्यातहजार वर्षमात्र मोहनीयका स्थितिबन्ध है ॥ ३२३ ॥
थी अणुवसमे पढमे वीसकसायाण होदि गुणसेढी। संढुवसमोत्ति मज्झे संखाभागेसु तीदेसु ॥ ३२४ ॥
स्त्री अनुशमे प्रथमे विंशकषायाणां भवति गुणश्रेणी ।
षंढोपशम इति मध्ये संख्यभागेष्वतीतेषु ॥ ३२४ ॥ अर्थ-उससे आगे अन्तर्मुहूर्तकाल वीतनेपर स्त्रीवेदका उपशम नष्ट होजाता है वहांसे लेकर प्रथमसमयमें स्त्रीवेद और पहले कहे हुए उन्नीस कषाय-इसतरह वीस कषायोंकी गुणश्रेणी होती है । उसीकालमें जबतक नपुंसकवेदका उपशम है तवतकके कालके संख्यात बहुभाग वीतनेपर ॥ ३२४ ॥
घादितियाणं णियमा असंखवस्सं तु होदि ठिदिबंधो। तकाले दुट्टाणं रसबंधो ताण देसघादीणं ॥ ३२५ ॥ घातित्रयाणां नियमात् असंख्यवर्षस्तु भवति स्थितिबंधः । तत्काले द्विस्थानं रसबंधः तेषां देशघातिनाम् ॥ ३२५ ॥