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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । सोदीरणानां द्रव्यं ददाति हि उदयावलौ इतरत्तु ।
उदयावलिबाह्यके अन्तरे ददाति श्रेण्याम् ॥ ३०६ ॥ अर्थ-वह देव उदयरूप प्रकृतियों के द्रव्यको उदयावलिमें देता है। और उदय रहित नपुंसकवेदादि मोहकी प्रकृतियोंके द्रव्यको उदयावलीसे बाह्य अन्तरायाम वा ऊपरकी स्थितिमें चय घटते क्रमसे देता है ॥ ३०६ ॥
अद्धाखए पडतो अधापवत्तोत्ति पडदि हु कमेण । सुज्झतो आरोहदि पडदि सो संकिलिस्संतो ॥ ३०७॥
अद्धाक्षये पतन अधःप्रवृत्त इति पतति हि क्रमेण ।
शुद्ध्यन आरोहति पतति स संक्लिश्यन् ॥ ३०७ ॥ अर्थ-उपशांतकषायका अन्तर्मुहूर्तकाल वीतनेपर क्रमसे पड़कर अधःप्रवृत्तकरणरूप अप्रमत्त होता है । उसके बाद शुद्धता सहित होनेसे ऊपरके गुणस्थानोंमें चढ जाता है
और वही जीव संक्लेश सहित होनेसे नीचेके गुणस्थानोंमें पड़ जाता है । यहां उपशमकालके क्षयके निमित्तसे पड़ना जानना ॥ ३०७ ॥
सुहुममपविठ्ठसमयेणदुवसामण तिलोहगुणसेढी। सुहुमद्धादो अहिया अवढिदा मोहगुणसेढी ॥ ३०८ ॥ सूक्ष्ममप्रविष्टसमयेनाध्रुवशमं त्रिलोभगुणश्रेणी।
सूक्ष्माद्धातो अधिका अवस्थिता मोहगुणश्रेणी ॥ ३०८ ॥ अर्थ-सूक्ष्मसांपरायमें प्रवेश करनेके वाद प्रथमसमयमें जिनका उपशमकरण नष्ट होगया है ऐसे अप्रत्याख्यानादि तीन लोभोंकी गुणश्रेणीका आरंभ होता है । उस गुणश्रेणी आयामका प्रमाण चढनेवाले सूक्ष्मसांपरायके कालसे एक आवलिमात्र अधिक है । इस अवसरमें मोहकी गुणश्रेणीका आयाम अवस्थितरूप जानना ॥ ३०८ ॥
उदयाणं उदयादो सेसाणं उदयबाहिरे देदि । छण्हें बाहिरसेसे पुवतिगादहियणिक्खेओ ॥ ३०९ ॥
उदयानामुदयतः शेषाणां उदयबाह्ये ददादि ।
षण्णां बाह्यशेषे पूर्वत्रिकादधिकनिक्षेपः ॥ ३०९ ॥ अर्थ---उदयरूप द्रव्यको अपकर्षणकर उदयरूप गुणश्रेणी आयाममें निक्षेपण करे और उदय रहित अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान लोभके द्रव्यको अपकर्षणकर उदयावलीसे बाह्य निक्षेपण करे । और आयु मोह के विना छह कर्मों के द्रव्यको अपकर्षणकर उदयावलीमें तथा बहुभाग गुणश्रेणी आयाममें देवै । वह गुणश्रेणी आयाम उतरनेवाले सूक्ष्मसांपरायादि तीनोंका मिलाये हुए कालसे कुछ अधिक प्रमाण लिये हुए गलितावशेषरूप है ॥ ३०९॥