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सनातनजैनग्रंथमालाकी
नियमावली। १. इस ग्रंथमालामें मूल संस्कृत प्राकृत तथा संस्कृतटीका सहित दिगंबरजैनाचार्यकृत दर्शन, सिद्धांत, न्याय, अध्यात्म, व्याकरण, काव्य, साहित्य, पुराण, इतिहास, गणित, ज्योतिष, वैद्यकप्रभृति सर्वप्रकारके प्राचीन ग्रंथही छपते हैं ।
२. इसे ग्रंथमालाका प्रत्येक अंके (खंड) दश फारमसे (८० पृष्टसे) कम नहीं होगा। और प्रत्येक खंड में एक दो या तीनसे अधिक ग्रंथ नहिं रहेंगे।
३. इस ग्रंथमालाका मूल्य १२ अंकोंका सर्वसाधारणसे ८) रु. प्रथम ही ले लिया जायगा और नैयायिक, वैदांतिक और संरकृतपुस्तकालयोंकी सेवामें यह ग्रंथमाला विना मूल्य भी भेजी जायगी। परंतु पोष्टेज खर्च प्रत्येक अंकका तीन आने वी. पी. से सबको देना होगा।
४. जो महाशय एक साथ १००) रु. भेजेंगे वे यापंजीव स्थायी ग्राहक समझे जावेंगे अर्थात् उहें यह ग्रंथमाला उमर पर्यंत विना मूल्य भेजी जायगी। परंतु मार्गव्यय उनको भी जुदा देना होगा।
५. जो दानी महाशय पुस्तकालयों, मंदिरों, विद्यार्थियों वा विद्वानोंको वितरण करनेकेलिये दानी ग्राहक बनेंगे उनको १००) रु. पेशगी भेजनेसे १२ अंक तक पंद्रह २ प्रति प्रत्येक अंककी भेजी जांयगी। मार्गव्यय पृथक् देना होगा। ऐसे ग्राहकों का नाम संस्थाके प्रचारकोंमें लिखा जायगा ।
नोट-समाका माम पलटकर अब ऐसा करदिया गया है। मूल्य व पत्र भेजने का पता- पन्नालाल जैन, व्यवस्थापक-भारतीयजैन सिद्धांतप्रकाशिनीसंस्था ।
पोष्ट बनारस सिटी।
जैनी भाइयोंसे प्रार्थना। यह ग्रंथमाला प्राचीन जैनग्रंथोंके जीर्णोद्धारार्थ व जैनधर्मके प्रचारार्थ प्रकाशित की जाती है । इसमें जो कुछ द्रव्यलाभ होगा वह भी धर्मप्रचार व परोपकारमें ही लगाया जायगा। इसकारण प्रत्येक धर्मात्मा उदार महाशयोंको चाहिये कि प्रथम तो एक एक दो दो ग्रंथ छपाकर जीर्णोद्धार करनेकेलिये अथवा अपने पिता आदिकी स्मृतिकोलिये द्रव्य प्रदान करें । दूसरे प्रत्येक मंदिरजीके शास्त्रभंडारमेंसे ग्राहक बनकर इन सब ग्रंथोंका संग्रह करके रक्षा करें अथवा स्वयं दानी ग्राहक (प्रचारक ) बनकर अपने यहांके संस्कृत पढनेवाले विद्यार्थियोंको अथवा संस्कृतज्ञ अन्यमती विद्वानोंको दान देकर सत्यार्थ पदार्थोंका प्रचार करें । शास्त्रदानी महाशयांकालये ही हमने पांचवां नियम बनाया है।
प्रार्थी-पन्नालाल बाकलीवाल।