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श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः ।
पदार्थ – [ नारकतिर्यङ्मनुष्याः देवाः ] नरक तिर्यञ्च मनुष्य देव [इति नामसंयुता: ] इन नामोंकर संयुक्त [ प्रकृतयः ] नामकर्मसम्बन्धिनी प्रकृतियें [ सतः ] विद्यमान - यीयके [नाशं] विनाशको [ कुर्वन्ति ] करतीं हैं । और [ असतः ] अविद्यमान [ भावस्य ] पर्यायकी [उत्पादः] उत्पत्तिको [ कुर्वन्ति ] करतीं हैं ।
भावार्थ - जैसें समुद्र अपने जलसमूहसे उत्पादव्ययअवस्थाको प्राप्त नहिं होता अपने स्वरूपसे स्थिर रहै परन्तु चारों ही दिशावोंकी पवन आनेसे कल्लोलोंका उत्पादव्यय होता रहता है. तैसें ही जीवद्रव्य अपने आत्मीकस्वभावोंसे उपजता विनशता नहीं है सदा टंकोत्कीर्ण है. परन्तु उस ही जीवके अनादि कर्मोपाधिके वशसे चारगति नामकर्म उदय उत्पादव्ययदशाको करता है ।
आगे जीवके पांच भावोंका वर्णन करते हैं ।
उण उवसमेण य खयेण दुहिं मिस्सिदेहिं परिणामे । जुत्ता ते जीवगुणा बहुसु य अत्थेसु विच्छिण्णा ॥ ५६ ॥
संस्कृतछाया.
उदयेनोपशमेन च क्षयेण च द्वाभ्यां मिश्रिताभ्यां परिणामेन । युक्तास्ते जीवगुणा बहुषु चार्थेषु विस्तीर्णाः ॥ ५६ ॥
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पदार्थ–[ये] जो भाव [ उदयेन] कर्मके उदयकर [च] और [उपशमेन ] कर्मों के उपशम होनेकर [च] तथा [ क्षयेण ] कर्मोंके क्षयकर [ द्वाभ्यां मिश्रिताभ्यां ] उपशम और क्षय इन दोनों जातिके मिलेहुये कर्मपरिणामोंकर [च] और [ परिणामेन ] आत्मीक निजभावोंकर [युक्ताः] संयुक्त हैं [ते] वे भाव [ जीवगुणाः ] जीवके सामान्यतासे पांच भाव जानने । कैसे हैं वे भाव ? [ बहुषु अर्थेषु ] नानाप्रकारके भेदों में [विस्तीर्णाः] विस्तारलिये हुये हैं ।
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भावार्थ — सिद्धान्तमें जीवके पांच भाव कहे हैं. औदयिक १ औपशमिक २ क्षायिक ३ क्षायोपशमिक ४ और पारिणामिक ५ । जो शुभाशुभ कर्मके उदयसे जीवके भाव होंय उनको औदयिकभाव कहते हैं । और कर्मों के उपशमसे जीवके जो जो भाव होते हैं उनको औपशमिकभाव कहते हैं. जैसें कीचके नीचे बैठनेसे जल निर्मल होता है उसी प्रकार कर्मोंके उपशम होनेसे औपशमिक भाव होते हैं । और जो भावकर्मके उदय अनुदयकर होंय ते क्षायोपशमिक भाव कहाते हैं । और जो सर्वथा प्रकार कर्मों के क्षय होनेसे भाव होते हैं उनको क्षायिक भाव कहते हैं । जिनकरके जीव अस्तित्वरूप है सो पारिणामिक भाव होते हैं । ये पांच भाव जीवके होते हैं । इनमें से ४ भाव कर्मोपधिके निमित्तसे होते हैं. एक पारिणामिक भाव कर्मोपाधिरहित स्वाभाविक भाव है । कर्मोपाधिके भेदसे और स्वरूपके भेद होनेसे ये ही पांच भाव नानाप्रकारके होते हैं ।