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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
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है. इस कारण जीवद्रव्य भी अपने द्रव्यत्वकर नित्य है । उस ही जीवद्रव्यके अशुद्धपर्यायकी अपेक्षा भाव, अभाव, भावाभाव, अभावभाव, इन भेदसे चार प्रकार पर्यायका अस्तित्व कहा गया है । जहां देवादिपर्यायों की उत्पत्तिरूप होय परिणमता है, तहां तो भावका कर्तृत्व कहा जाता है. और जहां मनुष्यादि पर्यायके नाशरूप परिणमै है, तहां अभावका कर्तृत्व कहा जाता है । और जहां विद्यमान देवादिक पर्यायके नाशकी प्रारंभदशारूप होय परिणमता है, तहां भावअभावका कर्तृत्व है । और जहां नहीं है मनुष्यादि पर्याय उसकी प्रारंभ - दशारूप होकर परिणमता है, तहां अभाव भावका कर्तृत्व कहा जाता है । यह चार प्रकार पर्यायकी विवक्षासे अखंडित व्याख्यान जानना । द्रव्यपर्यायकी मुख्यता और गौणतासे द्रव्यों में भेद होता है, वह भेद दिखाया जाता है । जब जीवका कथन पर्यायकी गौणता और द्रव्यकी मुख्यतासे किया जाता है तो ये पूर्वोक्त चारप्रकार कर्तृत्व नहिं संभवता । और जब द्रव्यकी गौणता और पर्यायकी मुख्यतासे जीवका कथन किया जाता है तो ये पूर्वोक्त चारप्रकारके पर्यायका कर्तृत्व अविरुद्ध संभवता है । इसप्रकार यह मुख्य गौण भेदके कारण व्याख्यान भगवत्सर्वज्ञप्रणीत अनेकान्तवादमे विरोधभावको नहिं धरता है । स्यात्पदसे अविरुद्ध साधता है । जैसे द्रव्यकी अशुद्धपर्यायके कथनसे सिद्धि की, उसीप्रकार आगम प्रमाणसे शुद्ध पर्यायोंकी भी विवक्षा जाननी । अन्य द्रव्योंका भी सिद्धान्तानुसार गुणपर्यायका कथन साध लेना । यह सामान्य स्वरूप षड्द्रव्योंका व्याख्यान
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जानना.
आगे सामान्यता से कहा जो यह षड्द्रव्योंका सामन्यवर्णन तिनमेंसे पांचद्रव्यों को पंचास्तिकाय संज्ञा स्थापन करते हैं ।
जीवा पुग्गलकाया आयासं अस्थिकाइया सेसा । अमया अस्थित्तमया कारणभूदा हि लोगस्स ॥ २२ ॥
संस्कृतछाया.
जीवाः पुद्गलकायाः आकाशमस्तिकाय शेषौ ।
अमया अस्तित्वमयाः कारणभूता हि लोकस्य ।। २२ ।
पदार्थ – [ जीवः ] एक तो जीवद्रव्य कायवन्त है [ पुद्गलकायाः ] दूसरा पुद्गलद्रव्य कायवन्त हैं और ( आकाशः ) तीसरा आकाशद्रव्य कायवन्त है और [शेषौ ] चौथा धर्म और पांचवां अधर्मद्रव्य भी [कायौ ] कायवन्त हैं । ये पांच द्रव्य कायवन्त कैसे हैं [ अमया ] किसी के भी बनाये हुये नहीं हैं, स्वभावहीसे स्वयं सिद्ध हैं । फिर कैसे हैं ? [ अस्तित्वमयाः] उत्पादव्ययधौव्यरूप जो सद्भाव तिसकर अपनेस्वरूप अस्तित्वको लियेहुये परिणामी हैं । फिर कैसे हैं ? [हि ] निश्चयकरके [लोकस्य ] नानाप्रकारकी परणति - रूप लोकके [कारणभूताः] निमित्तभूत हैं अर्थात् लोक इनसे ही बना हुवा हैं ।