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________________ दृष्टा सुधीभिरत एव घटेऽपि रक्ते श्यामाभिदाश्रयधियो भजना प्रमात्वे । सा निर्निमित्तकतयाऽध्यवसाय एव न स्यात् तदाश्रयणतस्तु तथा यथार्था ॥ २५ ॥ प्रत्यभिज्ञा में निमित्तभेद से भिन्न वस्तुवों के अभेद का भान होता है, इसी लिये रक्त घट में श्याम की अभिन्नता को अवभासित करने वाली प्रत्यभिज्ञा में विद्वान् पुरुषों ने अनियत प्रमाणता स्वीकार की है, क्योंकि निमित्तभेद का आधार छोड़ देने पर 'यह घड़ा रक्त श्याम है" इस प्रकार की उक्त प्रत्यभिज्ञा को अध्यवसायरूपता से वञ्चित होना पड़ेगा और उस स्थिति में उसकी प्रमाण-कक्षा में गणना असम्भव हो जायगी, क्योंकि अपने स्वरूप और विषय को अवभासित करने वाले संशय, विपरीत निश्चय सौर अनध्यवसाय से भिन्न ज्ञान को ही आकर ग्रन्थों में प्रमाण श्रेणी में गिना गया है, और यदि निमित्तभेद का सहारा लेकर उक्त प्रत्यभिज्ञा उद्भूत होगी तो उसे निमित्तभेद के अनुसार ही प्रमाणरूपता भी अवश्य ही होगी, अर्थात् उक्त प्रत्यभिज्ञा यदि एक घट में कालभेद से रक्तता और श्यामता को विषय करेगी तो यह प्रमाणरूप से समावृत होगी और यदि एक ही काल में उपर्युक्त दोनों धर्मो का एक घट में ग्रहण करने का साहस करेगी तो अप्रमाण की पंक्ति में बिठा दी जायगी । उक्त प्रत्यभिज्ञा की प्रमाणता के अनैयत्य का यही रहस्य है। स्वद्रव्यपर्ययगुणानुगता हि तत्ता तद्ब्यक्त्यभेदमपि ताशमेव सूते । संसर्गभावमधिगच्छति स स्वरूपात् सा वा स्वतः स्फुरति तत्पुनरन्यदेतत् ॥ २६ ॥ प्रत्यभिज्ञा में परिस्फुरित होने वाली तत्ता, आश्रयद्रव्य, उसके गुण और संस्थान तथा उसके गुणों के धर्मरूप पर्याय इन सभी का अनुगत धर्म है, जैसे श्याम घट की तत्ता घट, श्यामरूप, घट का आकार श्यामता आदि इन सभी वस्तुवों में आश्रित है। अतः वह प्रत्यभिज्ञा में अपने स्वरूपानुरूप ही अभेद को अवासित कराती है। तात्पर्य यह है कि तत्ताश्रयरूप तद्व्यक्ति का अभेद तत्ता के आश्रय जितने हैं उन प्रत्येक के जितने भेद हैं उन सभी भेदों के समूह का अभावरूप है, ऐसा होने से श्याम घट की तत्ता रक्त घट में भी उपपन्न हो जाती है, क्योंकि यद्यपि रक्ततादशा में श्यामता आदि धर्म सन्निहित नहीं हैं तो भी आश्रयद्रव्य एक होने से विद्यमान है। अतः घट श्यामरूप और ५न्या० ख०
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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