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________________ ( १५२ ) क्योंकि एक द्रव्य में प्रतिपादनीय बहुत्व बाधित है । पुष्पवन्त शब्द का दृष्टान्त द्रव्य शब्द के लिये उपयुक्त नहीं है। क्योंकि पुष्पवन्त शब्द के साथ नियमेन द्विवचन के प्रयोग का समर्थक व्याकरण का कोई विशेष अनुशासन न होने पर भी दूसरे कारण से पुष्पवन्त शब्द के द्विवचनान्त होने में कोई बाधा नहीं है । तात्पर्य यह है कि पुष्पवन्त शब्द की एक ही शक्ति चन्द्र और सूर्य इन दो विभिन्न अर्थों में है और वह शब्द इन अर्थों में किसी एक ही अर्थ को बताने के लिये कभी नहीं प्रयुक्त होता किन्तु चन्द्र और सूर्य इन दो अर्थों का प्रतिपादन करने के लिये ही प्रयुक्त होता है अतः उसके साथ प्रयुक्त होने वाले द्विवचन को पुष्पवन्त शब्दार्थ के विवक्षित द्वित्व को बताने में कोई अड़चन नहीं है। यह शङ्का कि चन्द्र, सूर्य-गत द्वित्व पुष्पवन्त पद के प्रवृत्तिनिमित्त चन्द्रत्व और सूर्यत्व का व्याप्य न होने से पुष्पवन्त शब्द के साथ प्रयुक्त होने वाले द्विवचन से प्रतिपादित नहीं हो सकता, ठीक नहीं है, क्योंकि चन्द्रत्व और सूर्यत्व अलग-अलग यद्यपि उक्त द्वित्व के व्यापक नहीं है तथापि पुष्पवन्त शब्द के प्रवृत्तिनिमित्तत्व रूप से व्यापक तो हैं ही क्यों कि उक्त द्वित्व के चन्द्र-सूर्यरूप दोनों ही आश्रयों में पुष्पवन्त शब्द का कोई न कोई प्रवृत्तिनिमित्त विद्यमान है और जब चन्द्रत्व और सूर्यत्व उक्त रूप से चन्द्र, सूर्य-गत द्वित्व के व्यापक हैं तो उक्त द्वित्व भी उक्त प्रकार से चन्द्रत्व और सूर्यत्व का व्याप्य हो ही सकत। है। द्रव्य शब्द की बात उससे भिन्न है क्योंकि वह उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य के विभिन्न तीन आश्रयों का बोधक न होकर उन तीनों के एक आश्रय का बोधक होता है और एक आश्रय में उस प्रकार का बहुत्व, जिसका प्रतिपादन करना बहुवचन के प्रयोग के लिये आवश्यक है, सम्भव नहीं है । एकत्वसंवलितविध्यनुवादभावाद् बौद्धं बहुत्वमपि नो वचनात्ययाय ! प्रत्येकमन्वयितयाऽपि न तत्प्रसङ्ग स्तात्पर्यसंघटितसन्निहिताश्रयत्वात् ।। ६६ ॥ उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य इन तीन धर्मो को द्रव्य पद का प्रवृत्तिनिमित्त मानने पर द्रव्य पद के नित्य बहुवचनान्त होने की शङ्का इस प्रकार पुनः उठती है कि उक्त तीन धर्मों के आश्रयभूत एक व्यक्ति में यद्यपि संख्यारूप बहुत्व तो नहीं रह सकता पर 'एक व्यक्ति उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य इन तीन धर्मो का आश्रय होता है' इस प्रकार की बुद्धि होने में कोई बाधा न होने मे बौद्ध बहुत्व तो रह ही सकता है, फिर इस बौद्ध बहुत्व की दृष्टि से एक व्यक्ति में भी बहुवचनान्त द्रव्य पद का प्रयोग होने में जब कोई बाधा नहीं है
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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