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________________ (830) यह आकार नहीं होगा कि वृक्ष अपने शाखाभाग में कम्पित हो रहा है' किन्तु उसका आकार होगा 'वृक्ष और शाखा दोनों कम्पित हो रहे हैं । अत: 'वृक्ष अपने शाखाभाग में कम्पित हो रहा है' इस लोकसिद्ध प्रतीति के अनुरोध से वृक्ष को समवाय सम्बन्ध से तथा शाखा को अवच्छेदकता सम्बन्ध से कम्पयुक्त मानना अनिवार्य है । चौथी बात यह है कि जब जलयुक्त दो पात्रों में एक पात्र का जल हिलता हुआ होता है तथा दूसरे पात्र का जल स्थिर होता है और उन दोनों जलों में निश्चल चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पड़ता है तब उस समय दो चन्द्रमा दीख पड़ते हैं, एक हिलते हुये जल हिलता हुआ और दूसरा स्थिर जल में स्थिररूप से विद्यमान, फिर जिस प्रकार एक ही चन्द्रमा चञ्चल और स्थिर जल में दो दीख पड़ता है, ठीक उसी प्रकार जब वृक्ष की केवल कोई एक ही शाखा कम्पयुक्त होगी और और अन्य भाग कम्पहीन होंगे तथा उन दोनों प्रकार के अवयवों में वृक्ष स्वयं निष्क्रम्प रहकर सम्बद्ध होगा तब एक ही वृक्ष को दो प्रकार के अवयवों में दो दीख पड़ना चाहिये । परन्तु ऐसा नहीं होता, अतः यही भानना उचित होगा कि जब वृक्ष का कोई भाग कम्पित होता है तब उस भाग में वृक्ष स्वयं भी कम्पित हो जाता है और उसका जो भाग निष्कम्प रहता है उसमें वह भी निष्कम्प रहता है, इस पक्ष में कम्पयुक्त और कम्पहीन अवयवों में एक ही वृक्ष दो क्यों नहीं दीख पड़ता, इस प्रश्न का क्या उत्तर होगा ? इसका उत्तर यह है कि जहाँ चञ्चल और स्थिर दोनों आधार एक दूसरे से पृथक होते हैं और दोनों के बीच व्यवधान करने वाला भी कोई पृथक् होता है वहीं आधारभेद से आधेयभेद की प्रतीति होती है, दो पात्रों में रखे जल एक दूसरे से पृथक् हैं और उनके बीच व्यवधान करने वाली पात्ररूप एक पृथक् वस्तु है, अतः दो जलों में एक ही चन्द्रमा को दो रूप में दिखाई देना युक्तिसंगत है, पर वृक्ष के अवयव एक दूसरे से पृथक नहीं हैं, उनके बीच व्यवधान करने वाली उनसे पृथक् कोई वस्तु भी नहीं है, अतः उनमें एक वृक्ष का दो दिखाई देना कथमपि सम्भव नहीं हैं । इस पर यदि यह कहा जाय कि यह उत्तर तो वृक्ष को निष्कम्प मानने पर भी दिया जा सकता है, तो यह ठीक न होगा, क्योंकि उक्त उत्तर के सम्भव होने पर भी उससे वृक्ष की अनेकान्तरूपता का निराकरण नहीं हो सकता, क्योंकि उक्त उत्तर में ही यह बात आ जाती है कि वृक्ष अपने अवयवों से अभिन्न भी है और भिन्न भी है, अभिन्नता अपृथग्भूतता रूप है और भिन्नता अन्यत्व वा वैधर्म्य रूप है । पाँचवीं बात यह है कि जब किसी अवयवी द्रव्य के किसी अवयव में कम्प होगा तब उस अवयवी में भी कम्प का होना अनिवार्य है, क्योंकि अवयवी
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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