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उचित होगा, किन्तु यदि सत्त्व में क्षणिकत्व की व्याप्ति का ज्ञान न हो सकने के कारण क्षणभङ्ग की ही सिद्धि न हो तो पृथ्वी पर अपने दोनों हाथ पटक कर उसे शोकमग्न ही होना पड़ेगा।
बौद्ध विद्वान् समूचे विश्व को क्षणिक बतलाते हुए नित्य आत्मा की सत्ता नहीं स्वीकार करते और अपनी इस मान्यता के समर्थन में वे लोग यह अनुमान उपस्थित करते हैं___ जो सत् है वह क्षणिक होता है जैसे घट, पट-घड़ा, कपड़ा आदि पदार्थ सत् होते हुए क्षणिक हैं । इन पदार्थों की क्षणिकता भिन्न-भिन्न क्षणों में उनकी प्रतीयमान विलक्षणता के नाते मानी जाती है। उसी प्रकार शब्द आदि जगत् के सारे पदार्थ जो विभिन्न क्षणों में विलक्षण नहीं प्रतीत होते, वे भी सत् हैं अतः उन्हें भी क्षणिक मानना उचित है।
उक्त अनुमान ठीक नहीं है, क्योंकि घट आदि पदार्थों की क्षणिकता में कोई प्रमाण न होने के कारण जो सत् है वह सभी क्षणिक है इस व्याप्ति-नियम का निश्चय नहीं किया जा सकता, और इस नियम के अभाव में विश्व की क्षणिकता का समर्थन किसी भी प्रकार से नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में अप्रामाणिक अनात्मवाद का सहारा लेकर संसाराभिमुख मार्ग पर बढ़ने वाले बौद्ध परिणाम में मुक्तिपथ से विचलित हो जाने का शोक छोड़ और कुछ नहीं पा सकते । ।
सामर्थ्यतद्विरहरूपविरुद्धधर्म
___ संसर्गतो न च घटादिषु भेदसिद्धः । व्याप्तिग्रहस्तव परस्य यतः प्रसङ्ग.
व्यत्यासयोर्बहुविकल्पहतेरसिद्धिः ॥५॥ सामर्थ्य और तद्विरह-- असामर्थ्य इन दो विरुद्ध धर्मों के सम्बन्ध से पहले क्षण में रहने वाले घट आदि पदार्थों में दूसरे क्षण में रहने वाले घट आदि पदार्थों का भेद सिद्ध होता है। यह भेद पहले क्षण में विद्यमान वस्तु का दूसरे क्षण में विनाश माने विना सम्भव नहीं। इस प्रकार घट आदि पदार्थों में सत्ता और क्षणिकता के सहचार का दर्शन होने से “जो सत् है वह सभी क्षणिक है" इस व्याप्ति का निश्चय निर्वाध रूप से हो सकता है किन्तु हे भगवन् ! तुम्हारी आज्ञा के बहिर्वर्ती बौद्ध का यह कथन ठीक नहीं क्योंकि क्षणिकता का मूलभूत भेद जिन विरुद्ध धर्मों के सम्बन्ध से सिद्ध किया जाता है वे साधक प्रसङ्ग-तर्क और व्यत्यास-विपरीतानुमान के अनेक विकल्पों से व्याहत होने के कारण सिद्ध ही नहीं होते ।