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( ११८ ) सिद्ध होता है, अतः अवयवहीन परमाणु को पक्ष बना उसमें सावयवत्व का साधन करने पर बाधका होना नितान्त प्रस्फुट है। इस असमाधेय दोष के कारण ही क्रिया आदि अन्य हेतुओं से भी परमाणु में सावयवत्व का अनुमान नहीं हो सकता, इस लिए उक्त अनुमान से निरवयव परमाणु की सिद्धि में किसी प्रकार की बाधा होने की सम्भावना नहीं है ।
नित्य, निरवयव परमाणु की सिद्धि में बाधकत्वेन सम्भावित युक्तियों के निराकरण का जो प्रकार अब तक उपन्यस्त किया गया है उसका समादर विज्ञानवादी को भी करना होगा, अन्यथा सत्ता तथा व्यवहारयोग्यत्व आदि हेतुओं से ज्ञान में मूर्तत्व का साधन करके मूर्तत्व हेतु से उसमें सावयवत्व का भी साधन कर लिया जायगा और उस साधन के फलस्वरूप निर वयव ज्ञान की सिद्धि असम्भव हो जाने से विज्ञानवादी को भी पराजित होना पड़ जायगा। ___इस पर बाह्य अर्थ का अस्तित्व न मानने वाले वादी यदि यह कहें कि हमें परमाणु आदि बाह्य अर्थों के समान ही ज्ञान के भी अस्तित्वरक्षा की कोई चिन्ता नहीं है, हम बाह्य अर्थ की बलिवेटी पर ज्ञान की भी बलि करने को प्रस्तुत हैं, अतः ज्ञान के अस्तित्वलोप की बिभीषिका दिखाकर हमें परमाणु आदि बाह्य अर्थ की सत्ता स्वीकार करने को बाध्य नहीं किया जा सकता, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि ज्ञान की भी सत्ता का लोप कर देने से सर्वशून्यता की प्रसक्ति होती है और सर्वशून्यता का पक्ष लेकर विचारक्षेत्र में प्रवेश ही नहीं किया जा सकता, कारण कि हेतु, दृष्टान्त आदि के द्वारा ही विचार का अवतरण होता है और सर्वशुन्यतावाद में हेतु आदि का अस्तित्व सम्भव ही नहीं है। ___ यदि यह कहा जाय कि सर्वशून्यतावाद में हेतु आदि की वास्तव सत्ता का ही निषेध किया जाता है, सांवृत अर्थात् वासनामूलक अवास्तव सत्ता तो मानी ही जाती है, अतः सर्वशून्यतावाद में भी सांवृतसत्ताशाली हेतु आदि के द्वारा विचारविनिमय करने में कोई बाधा नहीं है, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि संवृति के बल से वस्तु की सत्ता तभी हो सकती है जब संवृति की अपनी सत्ता मानी जाय, अन्यथा संवृति यदि स्वयं ही सत् न होगी तो वह दूसरे को अस्तित्वदान कैसे कर सकेगी? और यदि वह सत् मानी जायगी तो सर्वशून्यतावाद ही न खड़ा हो सकेगा, क्योंकि सब के भीतर संवृति भी आती है, फिर जब संवृति सत् हुई तो सर्वशून्यता कैसे सम्भव हो सकेगी ? यदि यह कहा जाय कि संवृति की भी वास्तव सत्ता मान्य नहीं है किन्तु उसकी भी संवृतिमूलक ही सत्ता मान्य है और सांवृतिक सत्ता के साथ सर्वशून्यता का