SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०७ ) वरण एक साथ प्रतीत होते हैं वहां वे अवयवी गामी न होकर अवयवगामी होते हैं और अवयव के विरोधी धर्म में अवयवी के एकत्व को कोई हानि नहीं पहुँचा सकते | यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि यदि एक आध अवयव के आवरण की दशा में भी अवयवी का अनावरण ही रहता है तब समस्त अवयवों के अनावरण के समय अवयवी में जितनी स्थूलता दिखती है उतनी ही एक आध अवयव के आवरण के समय भी दिखनी चाहिये क्योंकि अवयवी का अनावरण दोनों दशा में समान है। तो इसका उत्तर यह है कि अवयवी और स्थूलता ये दोनों वस्तुयें भिन्न हैं और उनके दर्शन की सामग्री भी भिन्न है । फलतः एक आध अत्रयव के आवरण काल में अवयवी के दर्शन की सामग्री तो रहती है, पर उसकी वह स्थूलता, जो समस्त अवयवों के अनावरण काल में दिखती है, उसके दर्शन की सामग्री नहीं रहती । अतः एक आध अवयव के आवरण काल में अवयवी का दर्शन होने पर उसकी स्थूलता का दर्शन नहीं होता । सक्रियत्व और निष्क्रियत्व के द्वारा भी अवयवी के एकत्व का खण्डन नहीं हो सकता, क्योंकि जिस समय अवयवी के किसी अवयव में क्रिया होती है। उस समय अवयवी क्रियाहीन ही होता है, अतः अवयवी में किसी भी दशा में क्रिया और उसके अभाव का समावेश प्रसक्त ही नहीं हो सकता । यदि यह कहा जाय कि अवयव की सक्रियता के समय अवयवी को सक्रिय मानना आवश्यक है क्योंकि अवयव को सक्रिय बनाने वाली सामग्री अवयवी को भी सक्रिय बनाती है, यह नियम है । अन्यथा समस्त अवयवों की सक्रियता के समय भी अवयवी में निष्क्रियत्व के सम्भव होने से उस समय निष्क्रिय अवयवी के दर्शन की आपत्ति होगी । तो यह कथन भी ठीक नहीं है, कारण कि अत्यन्त छोटे अवयव की सक्रियता के समय अवयवी में सक्रियता का दर्शन न होने के कारण अवयव को सक्रिय बनाने वाली सामग्री तथा अवयवी को सक्रिय बनाने वाली सामग्री को परस्पर भिन्न मानना आवश्यक है, फलतः यह नियम नहीं बन सकता कि जब किसी अवयवी का कोई अवयव सक्रिय हो तब अवयवी को भी सक्रिय होना ही चाहिये । हाँ, समस्त अवयवों को सक्रिय बनाने वाली सामग्री के समय अवयवी को सक्रिय बनाने वाली सामग्री का भी सन्निधान निरपवाद रूप से होता ही है, अतः उस समय अवयवी के नियमेन सक्रिय हो जाने से उसमें निष्क्रियता के दर्शन की आपत्ति नहीं हो सकती । रक्तत्व और अरक्तत्व के समावेश से भी अवयवी के एकत्व की हानि नहीं हो सकती क्योंकि किसी अवयवी के कुछ भाग के साथ रक्त द्रब्य का
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy