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________________ से सुन्दर वचनों द्वारा आपकी वाणी के गुणों की ही स्तुति मुझे करनी है क्योंकि वही सर्वोत्तम भाग्य का लाभ है। नैरात्म्यदृष्टिमिह साधनमाहुरेके सिद्धेः परे पुनरनाविलमात्मबोधम् । तैस्तैर्नयैरुभयपक्षसमापि ते वागा धं निहन्ति विशदव्यवहारदृष्टया ।। ३ ।। मोक्ष के उपाय का विचार करते हुये कुछ विद्वानों ने-बौद्धों ने-नैरात्म्यदर्शन को ज्ञान से भिन्न गुणों का आधार द्रव्य रूप आत्मा नहीं है, इस निश्चय को मोक्ष का उपाय बताया है, दूसरे विद्वानों ने जिन्हों ने न्याय, वैशेषिक शास्त्रों का अनुशीलन किया है, निर्मल आत्मज्ञान को-आत्मा शरीर, मन, इन्द्रिय आदि से भिन्न; जन्म, जरा आदि विकारों से रहित, ज्ञान से भिन्न और ज्ञान आदि गुणों का आधार द्रव्य है, इस निश्चय को मोक्ष का उपाय कहा है, हे भगवन् ! तुम्हारी वाणी द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक ऐसे भिन्न भिन्न नयों के अनुसार यद्यपि इन दोनों पक्षों के अनुकूल है तथापि विशदव्यवहार-मोक्ष की ओर ले जाने वाले व्यावहारिक पक्ष की दृष्टि से पहले पक्ष-बौद्धों के अनात्मवाद को अप्रामाणिक बता उसका खण्डन करती है । बौद्धों का अभिप्राय : संसार के प्राणी अपने आपको सुस्थिर मान कर अपने भविष्य को दु खहीन एवं सुखमय बनाने की इच्छा से अनेक प्रकार के भले बुरे उपायों से सुख के साधनों का संग्रह करते हुए पुण्य पाप का अर्जन करते हैं, फलतः उन्हें जन्म, जरा, व्याधि और मृत्यु जैसी अनिष्ट घटनाओं से भरे दुर्दिन देखने पड़ते हैं । इस प्रकार विचार करने पर मनुष्य के समस्त संकटों का मूल उसकी कामना ही प्रतीत होती है और उस कामना का प्रधान कारण मनुष्य का अपने आपकी स्थिरता का विश्वास ही है, अतः मनुष्य को अपने तथा जगत् के बारे में सर्वदा यह भावना करनी चाहिये कि वह क्षणिक है या कुछ नहीं है, जगत् की कोई वस्तु स्थायी नहीं है, सारा संसार क्षणभङ्गर या मिथ्या है। इस भावना के दृढ़ हो जाने पर उसे किसी वस्तु की कामना न होगी, कामना न होने पर वह भलेबुरे कर्मों से बचेगा, उसके पुण्य-पाप के आय का द्वार बन्द हो जायगा और फिर किसी प्रकार के दुःख की छाया भी उसे कभी न छू सकेगी। इस प्रकार आलोचन करने से यही सिद्ध होता है कि आत्मा के अपने आप के न होने का निश्चय ही मनुष्य के निर्दु:ख या मुक्त होने का निश्चित उपाय है।
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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