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________________ ८३ समयसारः ।... एवमेवंप्रकारा इतरेपि बहुप्रकारा परमात्मेति व्यपदिशति दुर्मेधसः किंतु न ते परमार्थवादिभिः परमार्थवादिनः इति निर्दिश्यते ॥ ३९ ॥४०॥४१॥ ४२ ॥४३॥ कुतः एए सव्वे भावा पुग्गलवपरिणामणिप्पण्णा। केवलिजिणेहिं भणिया कह ते जीवो ति वचंति ॥४४॥ एते सर्वे भावाः पुद्गलद्रव्यपरिणामनिष्पन्नाः । केवलिजिनैणिताः कथं ते जीव इत्युच्यते ॥ ४४ ॥ यतः एतेऽध्यवसानादयः समस्ता एव भावा भगवद्भिर्विश्वसाक्षिभिरर्हद्भिः पुद्गलद्रव्य. परिणाममयत्वेन प्रज्ञप्ताः संतश्चैतन्यशून्यात्पुद्गलद्रव्यादतिरिक्तत्वेन प्रज्ञाप्यमानं चैतन्यस्वभावं जीवद्रव्यं भवितुं नोत्सहंते ततो न खल्वागमयुक्तिवानुभवैर्बाधितपक्षत्वात् तदात्मवादिनः परमार्थवादिनः एतदेव सर्वज्ञवचनं तावदागमः । इयं तु स्वानुभवगर्भिता दिहा तेन कारणेन तु पुनः देहरागादिकं परद्रव्यमात्मानं वदंतीत्येवंशीलाः परात्मवादिनो निश्चयवादिभिः सर्वज्ञनिर्दिष्टा इति पंचगाथाभिः पूर्वपक्षः कृतः ॥३९॥४०॥४१॥४२॥४३॥ अथ परिहारं वदति;-एदे सव्वे भावा पुग्गलवपरिणामणिप्पण्णा एते सर्वे देहरागादयः कर्मजनितपर्यायाः पुद्गलद्रव्यकर्मोदयपरिणामेन निष्पन्नाः । केवलिजिणेहिं भणिया कह ते जीवोति उच्चंति केवलिजिनैः सर्वज्ञैः कर्मजनिता इति भणिताः कथं सर्वज्ञको दीखता है तथा सर्वज्ञकी परंपराके आगमसे जाना जाता है । जिनके मतमें सर्वज्ञ नहीं माना वेही अपनी बुद्धिसे अनेक कल्पना कर कहते हैं । उनमेंसे वेदांती, मीमांसक, सांख्य, योग, बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक, चार्वाक मतोंके आशय लेकर आठ तो प्रगट हैं और अन्यभी अपनी अपनी बुद्धिसे अनेक कल्पना कर कहते हैं उनको कहांतक कहा जावे ॥ ३९ । ४० । ४१ । ४२ । ४३ ॥ ऐसा कहनेवाले सत्यार्थवादी नहीं हैं सो क्यों नहीं ? उसका उत्तर कहते हैं;-एते ये पूर्व कहेहुए अध्यवसान आदिक [ सर्वे भावाः ] भाव हैं वे सभी [पुद्गलद्रव्यपरिणामनिष्पन्नाः] पुद्गलद्रव्यके परिणमनसे उत्पन्न हुए हैं ऐसा [ केवलिजिनैः] केवली सर्वज्ञजिनदेवने [भणिताः] कहा है [ते जीवः] उनको जीव [इति कथं उच्यते ] ऐसा कैसे कह सकते हैं ? नहीं कह सकते ॥ टीका-ये अध्यवसानादिक भाव हैं उन सबको सब पदार्थों के साक्षात् देखनेवाले भगवान वीतराग सर्वज्ञ अरहंतदेवने पुद्गल द्रव्यके परिणाममयपनेकर कहा है इस कारण वे चैतन्य भावकर शून्य जो पुद्गल द्रव्य उससे भिन्नपनेकर कहे गये चैतन्य स्वभावमय जीव द्रव्य होनेको समर्थ नहीं हैं इसलिये निश्वयसे आगम, युक्ति और खानुभव इन तीनोंकर बाधित पक्षपनेसे जो इन अध्यवसानादिकोंको जीव कहते हैं वे परमार्थवादी ( सत्यार्थवादी ) नहीं हैं। उनमेंसे ये जीव
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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