SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [ सर्वविशुद्धज्ञानप्रतिषिद्धत्वाव्यस्यास्त्युच्छेदः, ततो न भवति सेटिका कुड्यादेः । यदि न भवति सेटिका कुड्यादेस्तर्हि कस्य सेटिका भवति ? सेटिकाया एव सेटिका भवति । ननु कतरान्या सेटिका यस्याः सेटिका भवति ? न खल्वन्या सेटिका सेटिकायाः। किंतु स्वस्खाम्यंशावेवान्यौ। किमत्र साध्यं खस्खाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तर्हि न कस्यापि सेटिका, सेटिका सेटिकैवेति निश्चयः। यथा दृष्टांतस्तथायं दार्टीतिकः । चेतयितात्र तावद् ज्ञानगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यं तस्य तु व्यवहारेण ज्ञेयं पुद्गलादि द्रव्यं । अथात्र पुद्गलादेः परद्रव्यस्य ज्ञेयस्य ज्ञायकश्वेतयिता किं भवति किं न भवतीति ? तदुभयतत्त्वसंबंधो मीमांस्यते । यदि चेतयिता पुद्गलादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञेयं वस्तु व्यवहारेण जानाति नच परद्रव्येण सह तन्मयो भवति । कोऽसौ कर्ता ? ज्ञातात्मा। केन जानाति ? स्वकीयज्ञानभावेनेति, प्रथमगाथा गता। तथैव च तेनैव श्वेतमृतिकादृष्टांतेन घटादिकं दृश्यं परद्रव्यं व्यवहारेण पश्यति न च परद्रव्येण सह तन्मयो भवति । कोऽसौ ? ज्ञातोत्मा । केन पश्यति ? स्वकीयदर्शनभावेनेति द्वितीयगाथा गता । तथैव च तेनैव श्वेतमृसिद्ध हुआ कि सेटिका किसीकी भी नहीं सेटिका सेटिका ही है ऐसा निश्चय है। जैसे यह दृष्टांत है वैसे यहां दार्टीतिक अर्थ है-यहां चेतयिता आत्मा प्रथम ही दर्शनगुणकर जिसका स्वभाव भरा हुआ है ऐसा द्रव्य है उसके व्यवहारकर देखने योग्य पुद्गल आदि परद्रव्य हैं। अब यहां दोनोंका परमार्थभूत तत्त्वरूप संबंध विचारते हैं कि जो पुद्गल आदि परद्रव्य है उसका चेतयिता है या नहीं ? यदि चेतयिता पुद्गल द्रव्यादिका है ऐसा मानो तो यह न्याय है कि जो जिसका होता है वह वही है अन्य नहीं है । जैसे आत्माका ज्ञान हुआ आत्मा ही है ज्ञान जुदा द्रव्य नहीं है ऐसे तत्त्वसंबंधके विद्यमान होनेपर चेतयिता पुद्गल आदिका हुआ पुद्गल आदिक ही होसकेगा जुदा द्रव्य न हो सकेगा। ऐसा होनेपर चेतयिताके स्वद्रव्यका उच्छेद नाश होजाइगा परंतु द्रव्यका नाश होता नहीं । क्योंकि अन्यद्रव्यको पलटकर अन्यद्रव्य होनेका पहले ही निषेध कर चुके हैं । इसलिये यह ठहरा कि चेतयिता पुद्गल द्रव्य आदिका नहीं हैं। यहां पूछते हैं कि चेतयिता पुद्गलद्रव्य आदिका नहीं है तो किसका है ? उसका उत्तरचेतयिताका ही चेतयिता है । फिर पूछते हैं वह दूसरा चेतयिता कोनसा है जिसका यह चेतयिता हो ? उसका उत्तर-चेतयितासे अन्य तो चेतयिता नहीं है । तो क्या है। स्वस्वामि अंश ही अन्य है । वहां कहते हैं कि यहां निश्चयनयमे स्वस्वामि अंशका व्यवहारकर क्या साध्य है ? कुछ भी नहीं । तव यह ठहरा कि चेतयिता किसीका भी दर्शक नहीं है दर्शक है वह दर्शक ही है । यहां निश्चयनयमें स्वस्वामि अंशका व्यव. १ अत्र क. पुस्तके ज्ञानात्मेति पाठः। २ अत्रापि क. ज्ञानात्मेत्येव पाठः ।
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy