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________________ ४१० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अथ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकारः ॥ ९ ॥ [ सर्वविशुद्धज्ञान अथ प्रविशति सर्वविशुद्धज्ञानं । " नीत्वा सम्यक् प्रलयमखिलान् कर्तृभोकादिभावान् दूरीभूतः प्रतिपदमयं बंधमोक्षप्रकृतैः । शुद्धः शुद्धः स्वरसविसरापूर्ण पुण्याचलार्चिकोत्कीर्णप्रकटमहिमा स्फूर्जति ज्ञानपुंजः ॥ १९३ ॥ कर्तृत्वं न स्वभावोस्य चितो वेदयितृत्ववत् । अज्ञानादेव कतीयं तदभावादकारकः ॥ १९४ ॥ अथात्मनोऽकर्तृत्वं दृष्टांत पुरस्सरमाख्यातिः — दद्वियं जं उप्पज्जइ गुणेहिं तं तेहिं जाणसु अणणं । जह कडयादीहिंदु पजएहिं कणयं अणण्णमिह ॥ ३०८ ॥ जीवरसाजीवस्स दु जे परिणामा दु देसिया सुत्ते । तं जीवमजीवं वा तेहिमणण्णं वियाणाहि ॥ ३०९ ॥ ण कुदोचि विउप्पण्णो जमा कज्जं ण तेण सो आदा । उप्पादेदि ण किंचिवि कारणमवि तेण ण स होइ ॥ ३१० ॥ कम्मं पडुच्च कत्ता कत्तारं तह पडुच्च कम्माणि । उप्पंजंति य णियमा सिद्धी दु ण दीसए अण्णा ॥ ३११ ॥ द्रव्यं यदुत्पद्यते गुणैस्तत्तैर्जानीह्यनन्यत् । यथा कटकादिभिस्तु पर्यायैः कनकमनन्यदिह ॥ ३०८ ॥ अथ प्रविशति सर्वविशुद्धज्ञानं । संसारपर्यायमाश्रित्याशुद्धोपादानरूपेणाशुद्धनिश्वनयेन यद्यपि कर्तृत्वभोक्तृत्वबंधमोक्षादिपरिणामसहितो जीवस्तथापि सर्वविशुद्धपारिणामिकपरमग्राहकेण शुद्धोपादानरूपेण शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन कर्तृत्वभोक्तृत्वबंधमोक्षादिकरणभूतपरिणामशून्य एवेति । द्वियं जं उप्पजदि इत्यादिगाथामादिं कृत्वा चतुर्द अथ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार । दोहा - " सर्वविशुद्ध सुज्ञानमय, सदा आतमाराम । परकूं करै न भोगवै, जानै जपि तसु नाम" यहां मोक्षतत्त्वका स्वांग निकलने वाद सर्वविशुद्ध ज्ञान प्रवेश करता है। रंगभूमिमें जीवाजीव, कर्ता कर्म, पुण्य पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष-ये आठ स्वांग आये थे उनका नृत्य हुआ । अपना अपना स्वरूप दिखला के निकल गये । अब सब स्वांग दूर हुए एकाकार सर्वविशुद्ध ज्ञान प्रवेश करता है । वहां प्रथम ही मंगलरूप ज्ञानपुंज आत्माकी महिमाका १९३ वां काव्य कहते हैं— नीत्वा इत्यादि । अर्थ - ज्ञानका पुंज आत्मा सब ही कर्ता भोक्तापन के भावोंको अच्छी तरह नाशको प्राप्तकर प्रगट होता है । कैसा है ? वारंवार नाशको प्राप्तकर प्रगट होता है । कर्मके क्षयोपशमके निमित्तसे अनेक अवस्थायें होती हैं उनमें बंध 1
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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