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________________ अधिकारः ७] समयसारः। ण य रायदोसमोहं कुव्वदि णाणी कसायभावं वा । सयमप्पणो ण सो तेण कारगो तेसि भावाणं ॥ २८॥ नापि रागद्वेषमोहं करोति ज्ञानी कषायभावं वा। स्वयमात्मनो न स तेन कारकस्तेषां भावानां ॥ २८०॥ यथोक्तवस्तुस्वभावं जानन ज्ञानी शुद्धस्वभावादेव न प्रच्यवते, ततो रागद्वेषमोहादिभावैः स्वयं न परिणमते न परेणापि परिणम्यते, ततष्टकोत्कीर्णेकज्ञायकस्वभावो ज्ञानी रागद्वेषमोहादिभावानामकतैवेति नियमः ॥ "इति वस्तुस्वभावं स्वं नाज्ञानी वेत्ति तेन सः । रागादीनात्मनः कुर्यादतो भवति कारकः ॥ १७७ ॥" २८० ॥ रागादयो न तु ज्ञानिजीवजनिता इति दार्टीतो गतः ॥ २७८ ॥ २७९ ॥ एवं चिदानंदैकलक्षणं स्वस्वभावं जानन् ज्ञानी रागादीन करोति ततो नवतररागाद्युत्पत्तिकारणभूतकर्मणां कर्ता न भवतीति कथयति;-णवि रागदोसमोहं कुव्वदि णाणी कसायभावं वा ज्ञानी न करोति । कान् ? रागादिदोषरहितशुद्धात्मस्वभावात्पृथग्भूतान् रागद्वेषमोहान् क्रोधादिकषायभावं वा । कथं न करोति ? सयं स्वयं शुद्धात्मभावेन कर्मोदयसहकारिकारणं विना । कस्य संबंधित्वेन ? अप्पणो आत्मनः ण सो तेण कारगो तेसिं भावाणं तेन कारजानता हुआ ज्ञानी रागादिकको अपने नहीं करता ऐसी सूचनिकाका १७६ वां श्लोक कहते हैं-इति वस्तु इत्यादि । अर्थ-इसतरह अपने वस्तुस्वभावको ज्ञानी जानता है इसकारण वह ज्ञानी रागादिकको अपनेमें नहीं करता इसलिये रागादिकका कर्ता नहीं है ॥ २७८।२७९॥ __ आगे ऐसा ही गाथामें कहते हैं;-[ज्ञानी] ज्ञानी [स्वयमेव ] आप ही [आत्मनः ] अपने [रागद्वेषमोहं ] राग द्वेष मोह [वा कषायभावं] तथा कषायभाव [न च करोति ] नहीं करता [ तेन ] इसकारण [स] वह ज्ञानी [ तेषां भावानां] उन भावोंका [कारकः न ] करनेवाला ( कर्ता ) नहीं है। टीका-जैसा वस्तुका स्वभाव कहा गया है वैसा जानताहुआ ज्ञानी अपने शुद्ध स्वभावसे नहीं छूटता इसलिये राग द्वेष मोह आदि भावोंकर अपने आप नहीं परिणमता और दूसरेसे भी नहीं परिणमाया जाता । इसकारण टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभाव स्वरूप ज्ञानी राग द्वेष मोह आदि भावोंका अकर्ता ही है ऐसा नियम है ॥ भावार्थ-जब ज्ञानी हुआ तब वस्तुका ऐसा स्वभाव जाना कि आप तो आत्मा शुद्ध है द्रव्यदृष्टिकर अपरिणमनस्वरूप है पर्यायदृष्टिकर परद्रव्यके निमित्तसे रागादिरूप परिणमता है सो अब १ प्रतिनियमः इत्यपि पाठांतरं ।
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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