SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [बंधसूसूनुं हिनस्मीत्यध्यवसायो जायते, तथा वंध्यासुतस्याश्रयभूतस्यासद्भावेऽपि वंध्यासुतं हिनस्मीत्यध्यवसायो जायेत । नच जायते । ततो निराश्रयं नास्त्यध्यवसानमिति नियमः । तत एव चाध्यवसानाश्रयभूतस्य बाह्यवस्तुनोऽत्यंतप्रतिषेधः, हेतुप्रतिषेधेनैव हेतुमत्प्रतिषेधात् । नच बंधहेतुहेतुत्वे सत्यपि बाह्यं वस्तु बंधहेतुः स्यात् ईर्यासमितिपरिणतयतींद्रपदव्यापाद्यमानवेगापतत्कालचोदितकुलिंगवत् बाह्यवस्तुनो बंधहेतुहेतोरबंधहेतुत्वेन बंधहेतुत्वस्यानैकांतिकत्वात् । अतो न बाह्यवस्तु जीवस्यातद्भावो बंधहेतुः । अध्यवसानमेव तस्य तद्भावो बंधहेतुः ॥ २६५॥ व्यभिचारात् । तथाहि-बाह्यवस्तुनि सति नियमेन बंधो भवतीति अन्वयो नास्ति, तदभावे बंधो भवतीति व्यतिरेकोऽपि नास्ति । तर्हि किमर्थं बाह्यवस्तुत्यागः? इति चेत्, रागाद्यध्यवसानानां परिहारार्थ । अयमत्र भावार्थः । बाह्यपंचेंद्रियविषयभूते वस्तुनि सति अज्ञानभावात् रागाद्यध्यवसानं भवति तस्मादध्यवसानाद्वंधो भवतीति पारंपर्येण वस्तु बंधकारणं भवति न च साक्षात् । अध्यवसानं पुनर्निश्चयेन बंधकारणमिति ॥ २६५ ॥ एवं बंधहेतुत्वेन निर्धारित सुभटकी माताके पुत्रको मैं मारता हूं उसीतरह बांझके पुत्रका सद्भाव न होनेपर भी भी उसके आश्रय भी "मैं बंध्यासुतको मारता हूं" ऐसा अध्यवसान होना चाहिये सो तो नहीं होता। ऐसे विना आश्रय अध्यवसान नहीं उपजता । जब बंध्याका पुत्र ही नहीं है तो मारनेका अध्यवसान कैसे होसकता है ? इसलिये यह नियम है कि बाह्य वस्तुके विना निराश्रय अध्यवसान नहीं उत्पन्न होता इसीकारण अध्यवसानका आश्रयभूत जो बाह्यवस्तु उसका अत्यंत निषेध है इसलिये कारणके प्रतिषेधसे ही कार्यका भी प्रतिषेध होता है यह न्याय है । बाह्यवस्तु अध्यवसानका हेतु है इसकारण उसके निषेधसे अध्यवसानका निषेध होता है परंतु बाह्यवस्तुके बंधका हेतु अध्यवसानको हेतुपना होनेपर बाह्यवस्तु बंधका हेतु नहीं है इसमें व्यभिचार है । क्योंकि जैसे कोई मुनींद्र ईर्यासमितिरूप प्रवर्त रहा है उसके चरणसे हना गया जो कालका प्रेरा अतिवेगसे शीघ्र आकर पड़ा कोई उड़ता हुआ जीव उसके मर जानेसे मुनीश्वरको हिंसा नहीं लगती, उसीतरह अन्य वस्तु भी बंधके कारण माने गये हैं वे अबंधके भी कारण हैं । इसलिये बाह्य वस्तुको बंधका कारणपना माननेमें अनैकांतिक हेत्वाभासपना (व्यभिचार ) आता है क्योंकि निश्चयसे बाह्य वस्तुमें बंधका कारणपना निर्दोष सिद्ध नहीं होता । जीवके बाह्यवस्तु अतद्भावरूप है वह बंधका कारण नहीं है तद्भावस्वरूप अध्यवसान ही बंधका कारण है ॥ भावार्थ-बंधका कारण निश्चयनयकर अध्यवसान ही है और बाह्यवस्तुएं अध्यवसानका आलंबन ( सहायक ) हैं उनकी सहायतासे अध्यवसान उत्पन्न होता है इसलिये अध्यवसानका कारण कही जाती हैं । विना बाह्य वस्तु निराश्रय अध्यवसान
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy