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________________ ३३० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [ निर्जरासम्यग्दृष्टिः स्वयमतिरसादादिमध्यांतमुक्तं ज्ञानं भूत्वा नटति गगनाभोगरंगं विगाह्य ॥ १६२॥ २३६ ॥ इति निर्जरा निष्क्रांता। इति श्रीमदमृतचंद्रसूरिविरचितायां समयसारव्याख्यायात्मख्यातौ निर्जरा प्ररूपकः षष्ठोंऽकः ॥६॥ भोगाकांक्षारूपनिदानबंधादिविभावपरिणामानां प्रबलत्वात् इति दुर्लभपरंपरां ज्ञात्वा सर्वतात्पर्येण समाधौ प्रमादो न कर्तव्यः । तदप्युक्तं--इत्यतिदुर्लभरूपां बोधिं लब्ध्वा यदि प्रमादी स्यात् । संसृतिभीमारण्ये भ्रमति वराको नरः सुचिरं इति ॥ २३६ ॥ तत्रैवं सति शृंगाररहितपात्रवत् शांतरसरूपेण निर्जरा निष्क्रांता।। इति श्रीजयसेनाचार्यकृतायां समयसारव्याख्यायां शुद्धात्मानुभूतिलक्षणायां तात्पर्यवृत्तौ गाथाचतुष्टयं पीठिकारूपेण, गाथापंचकं ज्ञानवैराग्यशक्त्योः सामान्यविवरणरूपेण, गाथादशकं तयोरेव विशेषविवरणरूपेण, गाथाष्टकं ज्ञानगुणस्य सामान्यविवरणरूपेण, गाथाचतुर्दश तस्यैव विशेषविवरणरूपेण, गाथानवकं निश्शंकाद्यष्टगुणकथनरूपेण चेति समुदायेन पंचाशद्गाथाभिः षड्भिरंतराधिकारैः ___ सप्तमो निर्जराधिकारः समाप्तः ॥ ६ ॥ हैं बंध होना नहीं कहा परंतु गुणस्थानोंकी परिपाटीमें सिद्धांतमें अविरत सम्यग्दृष्टिसे लेकर बंध कहा गया है तथा घाति कर्मोंका कार्य आत्माके गुणोंका घात करना है सो दर्शन ज्ञान सुख वीर्य इन गुणोंका घात भी विद्यमान है। वहां चारित्र मोहका उदय नवीन बंध भी करता है। यदि मोहके उदयमें भी बंध न मानो तो मिथ्यादृष्टिके मिथ्यात्व अनंतानुबंधीका उदय होनेपर भी बंधका न होना क्यों नहीं मानाजाय ? उसका समाधान-बंध होनेमें मुख्य मिथ्यात्व अनंतानुबंधीका उदय ही है सो सम्यग्दष्टिके उनके उदयका अभाव है। और चारित्र मोहके उदयसे यद्यपि सुखगुणका घात है तथा अल्प स्थिति अनुभागलिये मिथ्यात्व अनंतानुबंधीके विना और उसके साथ रहनेवाली अन्य प्रकृतियोंके विना घातिया कर्मोंकी प्रकृतियोंका तथा अघातियाकांकी प्रकृतियोंका बंध भी होता है तौभी जैसा मिथ्यात्व अनंतानुबंधी सहित होता है वैसा नहीं होता। अनंत संसारका कारण तो मिथ्यात्व अनंतानुबंधी हैं उनका अभाव होनेके वाद उनका बंध नहीं होता। जब आत्मा ज्ञानी हुआ तब अन्य बंधकी गिनती कोन १ गगनलक्षणं यच्छुद्धखरूपं तस्याभोगो विस्तारः स एव रंगो नाट्यशाला।
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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