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________________ अधिकारः ३] समयसारः । २२१ भावप्रवृत्तज्ञानगमनतया समयः । सकलनयपक्षासंकीर्णैकज्ञानतया शुद्धः । केवलचिन्मा वस्तुतया केवली । मननमात्रभावमात्रतया मुनिः स्वयमेव ज्ञानतया ज्ञानी । स्वस्य भवनमात्रतया स्वस्वभावः स्वतश्चितो भवनमात्रतया सद्भावो वेति शब्दभेदेऽपि न च वस्तुभेदः ॥१५१॥ मतीति समयः । अथवा सम्यगयः संशयादिरहितो बोधो ज्ञानं यस्य भवति स समयः । अथवा समित्येकत्वेन परमसमरसीभावेन स्वकीयशुद्धस्वरूपे अयनं गमनं परिणमनं समयः सोऽपि स एव शुद्धो रागादिभावकर्मरहितो यः सोऽपि स एव केवली परद्रव्यरहितत्वेनासहायः केवली सोऽपि स एव मुणी मुनिः प्रत्यक्षज्ञानी सोऽपि परमात्मैव । तमि हिदा सहावे मुणिणो पावंति णिव्वाणं । तस्मिन् परमात्मस्वभावे स्थिता वीतरागस्वसंवेदनज्ञानरता मुनयस्तपोधना निर्वाणं प्राप्नुवंति लभंत इत्यर्थः ॥ १५१ ॥ अथ तस्मिन्नेव परमात्मनि स्वसंशुद्ध है [ केवली ] केवली है [मुनिः ] मुनि है [ ज्ञानी ] ज्ञानी है ये जिसके नाम हैं [तस्मिन् खभावे ] उस स्वभावमें [स्थिताः] तिष्ठे हुए [मुनयः ] मुनि [निर्वाणं] मोक्षको [प्रामवंति ] प्राप्त होते हैं ॥ टीका-ज्ञान ही मोक्षका कारण है क्योंकि अज्ञान शुभ अशुभ कर्मरूप है उसको बंधका कारणपना होनेसे मोक्षका कारणपना असिद्ध है । मोक्षका हेतुपना ज्ञानके ही वनता है यह ज्ञान ही परमार्थ है आत्मा है क्योंकि समस्त कौंको आदि लेकर अन्यपदार्थोंसे भिन्न जात्यंतर चिजातिमात्र है वही परमार्थस्वरूप आत्मा है जडजातिसे भिन्न है इसीको समय कहते हैं। समय शब्दका अर्थ पहले भी कहचुके हैं सम् ऐसा तो उपसर्ग है उसका अर्थ एककाल एकरूप प्रवर्तना है तथा अय ऐसे शब्दका अर्थ ज्ञान भी है गमन भी है, दोनों क्रियारूप एककाल प्रवर्ते उसको समय कहते हैं ऐसा प्रवर्तन जीव नामा पदार्थका है वही आत्मा है उसीका शुद्ध ऐसा नाम है क्योंकि समस्त धर्म तथा धर्मीके ग्रहण करनेवाले नयोंके पक्षोंसे नहीं मिलता जुदा ही ज्ञानपनेरूप असाधारणधर्म है वह अन्य धर्मोंसे जुदा ही प्रकाशरूप है अन्यसे नहीं मिलता । उस एकको ही शुद्ध कहते हैं इसीको केवली कहते हैं क्योंकि एक चैतन्यमात्र वस्तुपना इसके है केवल शब्दका अर्थ एक है । इसीको मुनि कहते हैं क्योंकि मननमात्र अर्थात् ज्ञानमात्र भावरूप यह है उसपनेसे मुनि भी यही है और स्वयमेव ( आप ) ज्ञानी है ही उसपनेसे इसको ज्ञानी भी कहते हैं। अपने ज्ञानस्वरूपका सत्तारूप प्रवर्तना उसपनेकर स्वभाव भी इसको कहते हैं तथा अपनी चेतनाका सत्तारूप होना उससे सद्भाव ऐसा भी नाम है । ऐसें शब्दोंके भेदसे नामभेद होनेपर भी वस्तुभेद नहीं है ॥ भावार्थ-मोक्षका उपादान कारण आत्मा ही है सो आत्माका परमार्थसे ज्ञानस्वभाव है ज्ञान है वह आत्मा ही है आत्मा है वह ज्ञान ही है इसलिये ज्ञानको ही मोक्षका कारण कहना युक्त है ॥ १५१ ॥
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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