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________________ समयसारः। ततः किं; कम्मं बद्धमबद्धं जीवे एवं तु जाण णयपक्खं । पक्खातिकतो पुण भण्णदि जो सो समयसारो ॥१४२॥ कर्म बद्धमबद्धं जीवे एवं तु जानीहि नयपक्षं । पक्षातिक्रांतः पुनर्भण्यते यः स समयसारः ॥१४२॥ यः किल जीवे बद्धं कर्मेति यश्च जीवेऽबद्धं कर्मेति विकल्पः स द्वितयोपि हि नयपक्षः । य एवैनमतिकामति स एव सकलविकल्पातिक्रांतः स्वयं निर्विकल्पैकविज्ञानघनस्वभावो भूत्वा साक्षात्समयसारः संभवति । तत्र यस्तावजीवे बद्धं कर्मेति विकल्पयति स जीवेऽबद्धं कर्मेति एकं पक्षमतिकामन्नपि न विकल्पमतिकामति । यस्तु जीवेऽबद्धं कर्मेति विकल्पयति सोपि जीवे बद्धं कर्मेत्येकं पक्षमतिक्रामन्नपि न विकल्पमतिकामति । यः पुयस्माद्बद्धाबद्धादिविकल्परूप नयस्वरूपमुक्तं तस्माच्छुद्धपारिणामिकपरमभावग्राहकेण शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन बद्धाबद्धादिनयविकल्परूपो जीवो न भवतीति प्रतिपादयति;-कम्मं बद्धमबद्धं जीवे एवं तु जाण णयपक्खं जीवेधिकरणभूते कर्म बद्धमबद्धं चेति योऽसौ विकल्पः स उभयोपि नयपक्षपातः स्वीकार इत्यर्थः पक्खातिकंतो पुण भण्णदि जो सो समयसारो नयपक्षातिक्रांतो भण्यते यः स समयसारः शुद्धात्मा । तद्यथा-व्यवहारेण बद्धो भागे कहते हैं कि ये दोनों नयपक्ष हैं उनसे क्या होता है ?;-[जीवे ] जीवमें [कर्म ] कर्म [बद्धं ] बंधे हुए हैं अथवा [अबद्धं ] नहीं बंधे हुए हैं [एवं तु] इसप्रकार तो [ नयपक्षं] नयपक्ष [जानीहि ] जानो [पुनः यः] और जो [पक्षातिक्रांतः ] पक्षसे दूरवर्ती [ भण्यते] कहा जाता है [सः समयसारः] यह समयसार है निर्विकल्प शुद्ध आत्मतत्त्व है ॥ टीका-जो निश्चयकर जीवमें कर्म बंधे हुए हैं ऐसा कहना तथा जीवमें कर्म नहीं बंधे हुए है ऐसा कहना ये दोनों ही विकल्प नयपक्ष है । जो इस नयपक्षके विकल्पको उल्लंघके वर्तता है अर्थात् छोड़ता है वही समस्त विकल्पोंसे दूर रहता है । वही आप निर्विकल्प एक विज्ञानधन स्वभावरूप होकर साक्षात् समयसार हो जाता है । प्रथम तो जो जीवमें कर्म बंधा है ऐसा विकल्प करता है वह "जीवमें कर्म नहीं बंधा है" ऐसा एक पक्षको छोड़ता हुआ भी विकल्पको नहीं छोड़ता । और जो जीवमें कर्म नहीं बंधा है ऐसा विकल्प करता है वह “जीवमें कर्म बंधा है, ऐसे विकल्परूप एक पक्षको छोड़ता हुआ भी विकल्पको नहीं छोड़ता, और जो जीवमें कर्म बंधा भी है तथा नहीं भी बंधा है ऐसा विकल्प करता है वह उन दोनों ही नयपक्षोंको नहीं छोड़ता हुआ विकल्पको नहीं छोड़ता । इसलिये जो सभी नयपक्षोंको छोड़ता है वही समस्त विकल्पोंको छोड़ता है तथा वही समयसारको अनुभवता है॥ भावार्थ-जीव कोंसे बंधा २६ समय.
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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