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________________ समयसारः । जीवात्पृथग्भूत एव पुद्गलद्रव्यस्य परिणाम; जइ जीवेण सहच्चिय पुग्गलदव्वस्स कम्मपरिणामो। एवं पुग्गलजीवा हु दोवि कम्मत्तमावण्णा ॥ १३९ ॥ एकस्स दु परिणामो पुग्गलव्वस्स कम्मभावेण ।। ता जीवभावहेदूहि विणा कम्मस्स परिणामो ॥१४॥ यदि जीवेन सह चैव पुद्गलद्रव्यस्य कर्मपरिणामः । एवं पुद्गलजीवौ खलु द्वावपि कर्मत्वमापन्नौ ॥ १३९ ॥ एकस्य तु परिणामः पुद्गलद्रव्यस्य कर्मभावेन । तज्जीवभावहेतुभिर्विना कर्मणः परिणामः ॥ १४० ॥ यदि पुद्गलद्रव्यस्य तन्निमित्तभूतरागाद्यज्ञानपरिणामपरिणतजीवेन सहैव कर्मपरिणामो भवतीति वितर्कः तदा पुद्गलद्रव्यजीवयोः सहभूतहरिद्रासुधयोरिव द्वयोरपि कर्मपरिणामाइति निरूपयति;-एकस्स परिणामो पुग्गलव्वस्स कम्मभावेण एकस्योपादानभूतस्य कर्मवर्गणायोग्यपुद्गलद्रव्यस्य द्रव्यकर्मरूपेण परिणामः यत एवं ता जीवभावहेदूर्हि विणा कम्मस्स परिणामो तस्मात्कारणाजीवगतमिथ्यात्वरागादिपरिणामोपादानहेतुभि आगे कहते हैं कि इसीतरह जीवका परिणाम भी पुद्गलद्रव्यसे जुदा ही है, जो ऐसा मानाजाय कि [जीवस्य ] जीवके [ परिणामाः ] परिणाम [ रागादयः] रागादिक हैं वे [खलु] निश्चयसे [कर्मणा च सह] कर्मके साथ होते हैं [ एवं तु] तो [ जीवः च कर्म ] जीव और कर्म [ हे अपि] ये दोनों ही [रागादित्वं आपन्ने] रागादि परिणामको प्राप्त हो जायँ। इसलिये यह सिद्ध हुआ कि [रागादिभिः] इन रागादिकोंसे [ एकस्य जीवस्य तु] एक जीवका ही [परिणामः ] परिणाम [जायते ] उत्पन्न होता है [ तत् ] वह [कर्मोदयहेतुभिविना ] कर्मका उदयरूप निमित्त कारणसे जुदा [ जीवस्य परिणामः] एक जीवका ही परिणाम है ॥ टीका-जो जीवका परिणाम रागादिरूप होता है उसको निमित्तभूत उदय आया जो पुद्गलकर्म उसके साथ ही होता है ऐसा मानाजाय तो जीव और पुद्गलकर्म दोनोंके ही हलदी और फिटकरीकी तरह ( जैसे रंगमें हलदी और फिटकरी साथ डालनेसे उन दोनोंका एक रंगस्वरूप परिणाम होता है वैसे ) कर्मपरिणामकी प्राप्ति होजायगी। ऐसा इष्ट नहीं है। यदि ऐसा ही मानाजाय कि रागादि अज्ञान परिणामकी प्राप्ति केवल एक जीवके ही होती है तो इस हेतुसे ऐसा आया कि पुद्गलकर्मका उदय जीवके रागादि अज्ञान परिणामोंको निमित्त है उससे रहित जुदा ही जीवका परिणाम है । भावार्थ-पुद्गलकर्मके उदयके साथ ही जीवका परिणाम मानाजाय तो जीव और कर्म इन दोनोंके रागादिककी प्राप्ति आये सो ऐसा नहीं है । इस
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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