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________________ समयसारः । १६३ कुर्वन प्रतिभाति ततस्तथा क्रोधादिपरद्रव्यात्मकं च समस्तमंतःकर्मापि करोत्यविशेषादित्यस्ति व्यामोहः ॥ ९८॥ स न सन् जदि सो परदव्वाणि य करिज णियमेण तम्मओ होज । जह्मा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता ॥ ९९ ॥ यदि स परद्रव्याणि च कुर्यान्नियमेन तन्मयो भवेत् । यस्मान्न तन्मयस्तेन स न तेषां भवति कर्ता ॥ ९९ ॥ यदि खल्वयमात्मा परद्रव्यात्मकं कर्म कुर्यात् तदा परिणामपरिणामिभावान्यथानुपपत्तेनियमेन तन्मयः स्यात् न च द्रव्यांतरमयत्वे द्रव्योच्छेदापत्तेस्तन्मयोस्ति । ततो तथाभ्यंतरेपि करणाणींद्रियाणि च नोकर्माणि इह जगति विविधानि क्रोधादिद्रव्यकाणीहापूर्वेण विशेषेण करोतीति मन्यते, ततोस्ति व्यामोहो मूढत्वं व्यवहारिणां ॥ ९८ ॥ अथ स व्यामोहः सत्यो न भवतीति कथयति;-जदि सो परदव्वाणि य करिज णियमेण तम्मओ होज यदि स आत्मा परद्रव्याणि नियमेनैकांतरूपेण करोति तदा तन्मयः स्यात् जह्मा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता यस्मात्सहजशुद्धस्वाभाविकानंतसुखादिस्वरूपं त्यक्त्वा परद्रव्येण सह तन्मयो न भवति । ततः स आत्मा तेषां [ नोकर्माणि ] शरीरादि नोकर्मोको करता है ॥ टीका-जिसकारण व्यवहारी जीवोंके यह आत्मा जैसे अपने विकल्प और व्यापार इन दोनोंकर घटआदि परद्रव्यस्वरूप बाह्यकर्म करता प्रतिभासता है इसकारण उसीतरह क्रोधादिक परद्रव्यस्वरूप समस्त अंतरंगकर्मको भी करता है । क्योंकि दोनों परद्रव्यस्वरूप हैं इनके करने में विशेष ( भेद ) नहीं इसतरह व्यवहारी जीवोंका अज्ञान है ॥ भावार्थ-परद्रव्योंका कर्ता अपनेको मानना यह व्यवहार है वह परमार्थदृष्टि में अज्ञान है ॥ ९८ ॥ आगे कहते हैं कि यह व्यवहारका मानना परमार्थदृष्टिमें अच्छा नहीं है सत्यार्थ नहीं है;-[ यदि ] जो [ सः] वह आत्मा [ परद्रव्याणि ] परद्रव्योंको [कुयात् ] करे [च ] तो [नियमेन] वह आत्मा उन परद्रव्योंसे नियमकर तन्मयः] तन्मय [ भवेत् ] होजाय [ यस्मात् ] परंतु [ तन्मयः न ] तन्मय नहीं होता [ तेन ] इसीकारण [ सः ] वह [तेषां ] उनका [कर्ता ] कर्ता [ न भवति] नहीं है ॥ टीका-जो निश्चयकर यह आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मको करे तो परिणामपरिणामीभावकी अन्यथा अप्राप्ति होनेसे नियमकर तन्मय हो जाय सो ऐसा नहीं है। यदि ऐसें हो तो अन्यद्रव्यसे अन्यद्रव्य तन्मय होनेसे अन्यद्रव्यका नाश हो जाय । इसलिये व्याप्यव्यापकभावकर तो उस परद्रव्यका कर्ता आत्मा नहीं है। भावार्थ-अन्यद्रव्यका कर्ता होवे तो जुदे २ द्रव्य क्यों रहैं अन्यद्रव्यका नाश होय यह
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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