SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । तस्मिन्निमित्ते सति पुद्गलद्रव्यं कर्मत्वेन स्वयमेव परिणमते । तथाहि-यथा साधकः किल तथाविधध्यानभावनात्मना परिणममानो ध्यानस्य कर्ता स्यात् । तस्मिंस्तु ध्यानभावे सकलसाध्यभावानुकूलतया निमित्तमात्रीभूते सति साधकं कर्तारमन्तरेणापि स्वयमेव बाध्यते विषयव्याप्तयो, विडंब्यंते योषितो, ध्वंस्यंते बंधास्तथायमज्ञानादात्मा मिथ्यादर्शनादिभावेनात्मनो परिणममाने मिथ्यादर्शनादिभावस्य कर्ता स्यात् । तस्मिंस्तु मिथ्यादर्शनादौ भावे खानुकूलतया निमित्तमात्रीभूते सत्यात्मानं कर्तारमंतरेणापि पुद्गलद्रव्यं मोहनीयादिकर्मत्वेन खयमेव परिणमते ॥ ९१॥ तस्स भावस्स यं भावं मिथ्यात्वादिविकारपरिणामं शुद्धस्वभावच्युतः सन् आत्मा करोति तस्य भावस्य स कर्ता भवति कम्मत्तं परिणमदे तम्हि सयं पुग्मलं व्वं तस्मिनेव त्रिविषविकारपरिणामकर्तृत्वे सति कर्मवर्गणायोग्यपुद्गलद्रव्यं स्वयमेवोपादानरूपेण द्रव्यकमत्वेन परिणमति । गारुडादिमंत्रपरिणतपुरुषपरिणामे सति देशांतरे स्वयमेव तत्पुरुषव्यापारमंतरेणापि विषापहारबंधविध्वंसस्त्रीविडंवनादिपरिणामवत् । तथैव च मिथ्यात्वरागादिविभावविनाशकाले निश्चयरत्नत्रयस्वरूपशुद्धोपयोगपरिणामे सति गारुडमंत्रसामर्थ्येन निर्बीजविषवत् स्वयमेव नीरसीभूय पूर्वबद्धं द्रव्यकर्म जीवात्पृथग्भूत्वा निर्जरां गच्छतीति भावार्थः । एवं स्वतंकर्ता [सः ] आप [ भवति ] होता है [ तस्मिन् ] उसको कर्ता होनेपर [प्युद्गलद्रव्यं ] पुद्गलद्रव्य [ स्वयं ] अपने आप [ कर्मत्वं] कर्मपनेरूप [ परिणमते ] परिणमता है ॥ टीका-आत्मा निश्चयकर आप ही उसतरह परिणमनेकर प्रगटपनेसे जिस भावको कर्ता है उसीका वह कर्ता होता है मंत्रसाधनेवालेकी तरह । तथा उस आत्माको वैसा निमित्त होनेपर पुद्गलद्रव्य कर्मभावरूप आप ही परिणमता है । यही प्रगट कहते हैं-जैसे मंत्रसाधनेवाला पुरुष जिस प्रकारके ध्यानरूप भावकर आप परिणमता है उसी ध्यानका कर्ता होता है । और जो समस्त उस साधकके साधने योग्य वस्तु उनके अनुकूलपनेकर उस ध्यानभावको निमित्तमात्र होनेपर उस साधकके विना ही अन्य सादिककी विषकी व्याप्ति स्वयमेव मिट जाती है, स्त्रीजनविडंबनारूप हो जाती हैं और बंधन खुल जाते हैं। इत्यादि कार्य मंत्रके ध्यानकी सामर्थ्य से हो जाते हैं। उसीतरह यह आत्मा अज्ञानसे मिथ्यादर्शनादिभावकर परिणमता हुआ मिथ्यादर्शनादि भावका कर्ता होता है तव उस मिथ्यादर्शनादि भावको अपने करनेके अनुकूलपनेसे निमित्तमात्र होनेपर आत्मा कर्ताके विना पुद्गलद्रव्य आप ही मोहनीयादि कर्मभावकर परिणमता है ॥ भावार्थ-आत्मा जब अज्ञानरूप परिणमता है तब किसीसे ममत्व करता है किसीसे राग करता है किसीसे द्वेष करता है उन भावोंका आप कर्ता होता है । उसको निमित्तमात्र होनेपर पुद्गलद्रव्य आप अपने भावकर कर्मरूप होके परिणमता है। परस्पर निमित्त नैमित्तिक भाव है । कर्ता दोनों अपने २ भावके हैं यह निश्चय है ॥११॥
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy