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________________ समयसारः। १०७ मस्ति । ततो रूपित्वेन लक्ष्यमाणं यत्किचिद्भवति स जीवो भवति । रूपित्वेन लक्ष्यमाणं पुद्गलद्रव्यमेव भवति । एवं पुद्गलद्रव्यमेव स्वयं जीवो भवति न पुनरितरः कतरोपि । तथा च सति मोक्षावस्थायामपि नित्यस्खलक्षणलक्षितस्य द्रव्यस्य सर्वास्वप्यवस्थाखनपायित्वादनादिनिधनत्वेन पुद्गलद्रव्यमेव स्वयं जीवो भवति न पुनरितरः कतरोपि । तथा च सति तस्यापि पुद्गलेभ्यो भिन्नस्य जीवद्रव्यस्याभावात् भवत्येव जीवाभावः । एवमेतत् स्थितं तज्ञानादिचतुष्टयस्वभावलक्षणं त्यक्त्वा शुक्लकृष्णादिलक्षणं रूपित्वमापन्ना भवंति । अथएवं पुग्गलदव्वं जीवो तह लक्खणेण मूढमई एवं पूर्वोक्तप्रकारेण जीवस्य रूपित्वे सति पुद्गलद्रव्यमेव जीवः नान्यः कोपि विशुद्धचैतन्यचमत्कारमात्रस्तव लक्षणेन तवाभिप्रायेण हे मूढमते न केवलं संसारावस्थायां पुद्गल एव जीवत्वं प्राप्तः णिव्वाणमुवगदो वि य जीवत्तं पुग्गलो पत्तो निर्वाणमुपगतोपि पुद्गल एव जीवत्वं प्राप्तः नान्यः कोपि चिद्रूपः । कस्मादिति चेत्, वर्णादितादात्म्यस्य पुद्गलद्रव्यस्येव निषेधयितुमशक्यत्वादिति भवत्येव जीवाभावः । किं च संसारावस्थायामेकांतेन वर्णादितादात्म्ये सति मोक्ष एव न घटते, कस्मादिति चेत् ? केवलज्ञानादिचतुष्टयव्यक्तिरूपस्य कार्यसमयसारस्यैव मोक्षसंज्ञा सा च जीवस्य पुद्गलत्वे सति न संभहोनेपर [पुद्गलद्रव्यं] पुद्गलद्रव्य ही [जीवः] जीव सिद्ध हुआ [तथालक्षणेन] पुद्गलके लक्षणके समान जीवका लक्षण होनेसे [ मूढमते ] हे मूढबुद्धि [निर्वाणं] निर्वाणको [उपगतोपि च ] प्राप्तहुआ [ पुद्गलः ] पुद्गल ही [जीवत्वं ] जीवपनेको [प्राप्तः ] प्राप्त हुआ ॥ टीका-जिसके मतमें संसारअवस्थामें जीवके वर्णादिभावोंकर सहित तादात्म्यसंबंध है ऐसा अभिप्राय है उसके संसारअवस्थाके समय वह जीव रूपीपनेको अवश्य प्राप्त होता है। और रूपीपना किसी द्रव्यका असाधारण अन्यद्रव्योंसे जुदा लक्षण है । इसलिये रूपीपने लक्षणमात्रसे जो कुछ है वही जीव है इसतरह रूपीपनेसे लक्ष्यमाण पुद्गलद्रव्य ही है । इसप्रकार पुद्गलद्रव्य ही आप जीव है अन्य कोई नहीं है । ऐसा होनेपर मोक्षअवस्थामें भी पुद्गलद्रव्य ही आप जीव होता है। क्योंकि जो द्रव्य है वह नित्य अपने लक्षणकर लक्षित है वह सभी अवस्थाओं में अविनाशस्वभाव है इसलिये अनादिनिधन है इसकारण पुद्गल ही जीव है अन्य कोई जुदा नहीं है। ऐसा होनेपर पुद्गलोंसे भिन्न जीवद्रव्यका अभाव होनेसे जीवका अभावही सिद्ध हुआ । इसलिये यह निश्चित हुआ कि वर्णादिकभाव हैं वे जीव नहीं हैं ॥ भावार्थजो कोई वर्णादिभावोंकर जीवके संसारअवस्थामें भी तादात्म्यसंबंध मानता है उसके भी जीवका अभाव ही आता है क्योंकि वर्णादिक मूर्तीकद्रव्यके लक्षण हैं ऐसा मूर्तीक पुद्गलद्रव्य है । वह वर्णादिकरूप जीव माना जाय तब जीव भी पुद्गल ही ठहरे। जब जीव मोक्ष होय तब वहां भी पुद्गल ही ठहरे तब पुद्गलसे जुदा तो जीव नहीं सिद्ध हो। इसतरह जीवका अभाव आवे । इसलिये वर्णादिक जीवके नहीं हैं ऐसा
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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