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________________ ९८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात् । यानि कषायविपाकोद्रेकलक्षणानि संक्लेशस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न संति जीवस्य पुद्गलद्रव्यपरिणामायत्वे सत्यनुभूतेभिन्नत्वात् । यानि कषायविपाकानुद्रेकलक्षणानि विशुद्धस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न संति जीवस्य पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेभिन्नत्वात् । यानि चारित्रमोहविपाककमनिवृत्तिलक्षणानि संयमलब्धिस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न संति जीवस्य पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेर्भिन्नत्वात्। यानि पर्याप्तापर्याप्तवादरसूक्ष्मैकेंद्रियद्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिंद्रियसंश्यसंज्ञिपंचेंद्रियलक्षणानि जीवस्थानानि तानि सर्वाण्यपि न संति जीवस्य पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सत्यनुभूतेभिन्नत्वात् । यानि मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्टिसम्यग्मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दष्टिसंयतासंयतप्रमत्तसंयतांप्रमत्तसयतापूर्वकरणोपशमकक्षपकानिवृत्तिबादरसांपरायोपशमकमेण बादरैकेंद्रियादिचतुर्दशजीवस्थानानि मिथ्यादृष्टयादिचतुर्दशगुणस्थानानि सर्वाण्यपि न संति पुद्गलद्रव्यपरिणाममयत्वे सति शुद्धात्मानुभूतेभिन्नत्वात् । कुतः इति चेत् , यतः कारणादेते वर्णादिगुणस्थानांताः परिणामाः शुद्धनिश्चयनयेन पुद्गलद्रव्यस्य पर्याया इति । अयमत्रभावार्थःसिद्धांतादिशास्त्रे अशुद्धपर्यायार्थिकनयेनाभ्यंतरे रागादयो बहिरंगे शरीरवर्णापेक्षया वर्णादयोपि नहीं हैं क्योंकि..... । १९ । काय, वचन, मनोरूप वर्गणाका चलना जिनका लक्षण है ऐसे योगस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि०.... । २० । जुदे जुदे विशेषोंको लिये प्रकृतियों के परिणाम जिनका लक्षण है ऐसे बंधस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि०.... । २१ । अपने फलके उत्पन्न करने में समर्थ कर्मकी अवस्था जिनका स्वरूप है ऐसे उदयस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि०....।२२। गति, इंद्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञा, आहार जिनका स्वरूप है ऐसे मार्गणास्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि०.... । २३ । जुदे जुदे विशेषोंको लिये प्रकृतियोंका कालांतरमें साथ रहना जिनका लक्षण है ऐसे स्थितिबंधके स्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि०.... । २४ ॥ कषायके विपाकका उत्कृष्टपना जिनका लक्षण है ऐसे संक्लेशस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि०.... । २५ । कषायके विपाकका मंदपना जिनका लक्षण है ऐसे विशुद्धिस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि०.... । २६ । चारित्र मोहके उदयकी क्रमसे निवृत्ति जिनका लक्षण है ऐसे संयमलब्धिस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि..... । २७ । पर्याप्त, अपर्याप्त, बादर, सूक्ष्म, एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, संज्ञी, असंज्ञी, पंचेंद्रिय जिनका लक्षण है ऐसे जीवस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि..... ॥२८॥ मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसांपराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, संयोगकेवली, अयोगकेवली, जिनका लक्षण है ऐसे सब गुणस्थान भी जीवके नहीं हैं, क्योंकि ये पुद्गल द्रव्यके परिणाममय हैं इसलिये अपनी अनुभूतिसे भिन्न हैं । २९ । इस
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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