SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चय है पर वहां निश्चय से पहले संकेत का स्मरण आदि नहीं होता। अवधि आदि प्रत्यक्ष और सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के निश्चय में यह मुख्य भेद है, इस कारण अवधि आदि पारमार्थिक प्रत्यक्ष हैं और इन्द्रिय आदि से जन्य प्रत्यक्ष सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है अर्थात् वह पारमार्थिक प्रत्यक्ष नहीं है। मलम्-एतच्च द्विविधम्-इन्द्रियजम्, अनिन्द्रियजं च । तन्द्रियजं चक्षुरादिजनितम, अनिन्द्रियजं च मनोजन्म । यद्यपीन्द्रियजज्ञानेऽपि मनो व्यापिपत्तिः तथापि तत्रेन्द्रियस्यैवासाधारणकारणत्वाददोषः। _____ अर्थ-इस सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के दो भेद हैंइन्द्रिय से उत्पन्न और अनिन्द्रिय से उत्पन्न । चक्षु आदि इन्द्रियों से जो उत्पन्न होता है वह इन्द्रिय जन्य कहा जाता है और जो मन से उत्पन्न होता है वह अनिन्द्रियजन्य कहा जाता है। यद्यपि इन्द्रिय से जन्य ज्ञान में भी मन कारण है, परंतु वहाँ असाधारण कारण तो इन्द्रिय ही है इसलिये दोष नहीं है। विवेचना-जिन ज्ञानों में इन्द्रिय मुख्य रूप से कारण हैं उनमें मन सहकारीकारण होता है । मन के बिना केवल इन्द्रिय से रूप आदि का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता। परन्तु मन के गौण होने के कारण चक्षु आदि से जन्य प्रत्यक्ष को मन से जन्य नहीं कहा जाता। अंकुर की उत्पत्ति में क्षेत्र जल
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy