SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसलिये इन्द्रिय और मन के द्वारा उत्पन्न प्रत्यक्ष परमार्थ में परोक्ष हैं । इन्द्रिय और मन आत्मा के व्यापार में व्यवधान को उत्पन्न करते हैं-इस अपेक्षा से परमार्थ में परोक्षता है इस कारण सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष अपारमार्थिक है। सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष को परोक्ष सिद्ध करने के लिये अन्य हेतु देते हैं मलम्-किश्च, असिद्धानकान्तिकविरुद्धानुमा. नाभासवत् संशयविपर्ययानध्यवसायसम्भवात्, सदनुमानवत् सङ्केतस्मरणादिपूर्वकनिश्चयसम्भवाच परमाथतः परोक्षमेवैतत् । अर्थ-इसके अतिरिक्त संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष में हो सकते हैं इसलिये यह परोक्ष है । जो परोक्ष होता है उसमें संशय आदि होते हैं । असिद्ध, अनैकान्तिक और विरुद्ध हेतु असत् हेतु हैं । उनसे जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह परोक्ष होता है और उस ज्ञान में संशय विपर्यय और अनध्यवसाय होते हैं। निर्दोष अनुमान में संकेत के स्मरण को कर के पीछे निश्चय होता है इसी प्रकार सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष में भी संकेत के स्मरण आदि से निश्चय होता है इसलिये यह परमार्थ में परोक्ष ही है।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy