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________________ २४ प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता। जब त्वचा से स्पर्श करता है, तब दाह होता है । दाह प्रत्यक्ष है इसलिये दाह से शक्ति का अनुमान होता है । दाह शक्ति के समान समस्त शक्तियाँ इन्द्रियों से उत्पन्न प्रत्यक्ष का विषय नहीं होती, अर्थात अतीन्द्रिय हैं। दाह आदि की शक्तियाँ के समान उपयोग में जो अर्थ को प्रतीति के लिये शक्ति है वह भी परोक्ष होनी चाहिये । परोक्ष शक्ति भी जो प्रमाण हो जाय तो उस शक्ति का फलरूप जान प्रत्यक्ष है इस प्रकार मानना पडेगा। फल ज्ञान प्रत्यक्ष रूप में अनुभवसिद्ध है । इसरोति से आप करण को परोक्ष और फल ज्ञान को प्रत्यक्षरूप में स्वीकार करोगे तो प्रभाकर के मत में प्रवेश की आपत्ति हो जायेगी। इस विषय में शंका करते हैं मलम्-अथ ज्ञानशक्तिरप्यात्मनि स्वाश्रये परिच्छिन्ने द्रव्यार्थतः प्रत्यक्षेति न दोष इति चेत् , अर्थ-जो आप इस प्रकार कहो-शक्ति का आश्रय आत्मा जब ज्ञात होता है तब द्रव्यार्थ से ज्ञान शक्ति भी प्रत्यक्ष हो जाती है इसलिये दोष नहीं है। विवेचना-जैन मत में समस्त पदार्थ अनन्तानन्त स्वभाववाले हैं, इसलिये कोई भी वस्तु एकान्त रूप से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप नहीं है। किन्तु अपेक्षा के भेद से प्रत्यक्ष और परोक्ष है। अर्थ के प्रकाशन की शक्ति भी पर्याय की अपेक्षा से परोक्ष है और द्रव्यार्थ की अपेक्षा से प्रत्यक्ष है। स्व और पर का निश्चय फल है और उससे आत्मा कुछ भिन्न और अभिन्न है । यह आत्मा प्रत्यक्ष है और अर्थ ग्रहण की शक्ति आत्मा से भिन्न और अभिन्न है। आत्मा प्रत्यक्ष है
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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