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________________ २९ विवेचना-केवल पर्याय ही कार्य को सिद्ध नहीं करता । नाम आदिसे भी कार्य सिद्ध होते हैं । घट पर्याय पानी लाने का साधन है और घट का नाम अन्य को घट के विषय में ज्ञान कराने का साधन है। बिना नाम के घट के विषय में लाने का ले जाने का अथवा रखने आदि का व्यवहार नहीं हो सकता । व्यवहार शब्द के अधीन है, शब्दरूप न होने के कारण भाव घट वाक्य के द्वारा व्यवहार का साधन नहीं हो सकता। स्थापना भी आकार का अनुभव कराती है । आकार का अनुभव कराना भी एक कार्य है। इस कारण स्थापना भी भाव है कारण, द्रव्य को देखकर रमसे उत्पन्न होने वाले कार्यों का ज्ञान होता है । भावी कार्य के विषय में ज्ञान उत्पन्न करना यह भी एक कार्य है। सभी भाव एक प्रकार के कार्य को नहीं उत्पन्न करते । भाव घट के समान नाम घट आदि भी अपने अपने कार्यों के उत्पन्न करने वाले है, इसलिए वे भी वस्तु रूप है। सामान्य रूपसे किसी भी शब्द को सुनकर नाम आदि चारों का ज्ञान होता है। किस अवसर पर किसको लेना है यह निर्णय प्रकरण आदि के द्वारा होता है । भाव जिस प्रकार वस्तुका पर्याय है, नाम आदि भी इस प्रकार वस्तु के पर्याय हैं। मलम्-भावाङ्गत्वेनैव वा नामादीनामुपयोगः जिननामजिन स्थापनापरिनिवृतमुनिदेहदर्शनाद्भावोल्लासानुभवात् । केवलं नामादित्रयं भावोल्लासेऽनैकान्तिकमनात्यन्तिकं च कारणमिति ऐकान्तिकात्यन्तिकस्य भावस्याभ्यहि
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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