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________________ २८ विवेचना:- कारणभूत द्रव्य जब किसी पर्याय से युक्त होता है तब उसके द्वारा कार्य किया जा सकता है। भावरूप अर्थ से जो कार्य सिद्ध होता है वह नाम, स्थापना अथवा द्रव्य से नहीं सिद्ध होता । मिट्टी का जब घट रूप में परिणाम होता है तभी पानो लाया जा सकता है । घट का नाम अथवा घट का चित्र अथवा घट का कारण मृत्पिंड पानो लाने का साधन नहीं बन सकता। इस लिए घट शब्द का वास्तव में वाच्य अर्थ मिट्टी का परिणाम स्वरूप भाव घट ही है, नाम आदि को घट शब्द का वाच्य मानने से कोई लाभ नहीं है । पानी का लाना आदि विशेष कार्य घट का है, वही यदि किसी अर्थ से नहीं सिद्ध होता तो उसको घट नाम से कहना उचित नहीं है । नाम केवल नाम है, - वह नाम के द्वारा वाच्य वस्तु के समान स्वयं वस्तु नहीं हो सकता । मूलम् - न, नामादीनामपि वस्तुपर्यायत्वेन सामान्यतो भाववानतिक्रमात् अविशिष्टे इन्द्र वस्तुन्युच्चरिते नामादि भेदचतुष्टय परामर्शनात् प्रकरणादिनैव विशेष पर्यवसानात् । अर्थ - उत्तर - नाम आदि भी वस्तु के पर्याय हैं, इस लिए - सामान्य रूप से उनमें भी भावपन है । सामान्य रूप से 'इन्द्र शब्द का उच्चारण करने पर नाम आदि चार भेदों का ज्ञान होता है, प्रकरण आदि के द्वारा विशेष का ज्ञान अंत में हो जाता है ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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