SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो जाता है, अथवा जिस उत्कृष्ट फल के प्राप्त करने की इच्छा होती है वह न मिलकर न्यून कोटिका फल मिलता है। एक मनुष्य चलकर किसी नियत स्थान पर नियत समय पर पहुँचना चाहता है । यदि चलते-चलते किसी अन्य विषय में ध्यान चला जाय तो पथिक जहाँ नहीं जाना चाहता वहाँ पहुँच जायगा । यदि अनुकूल दिशा में भी रहेगा तो नियत समय पर वांछित स्थान को न प्राप्तकर सकेगा । एक ग्राम वा नगरसे अन्य ग्राम वा नगर में जाने के लिए आजकल मोटर और रेल का उपयोग होता है । यदि यात्री चित्त के एकाग्र न होनेसे मोटर अथवा रेल के प्राप्ति स्थान पर जब पहुँचना चाहिए तब न पहुँच कर विलम्ब से पहुँचे तो गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पहली मोटर या रेल नहीं मिलेगी। कुछ समय के अनन्तर अन्य मोटर या रेल का आश्रय लेना पडेगा । इस कारण फल तो मिलेगा पर विलम्ब हो जायगा। यदि पथिक ने किसी एक दिशा में दूर तक दो चार स्थानों में जाना हो और वह नियत समय पर वाहनों के प्राप्ति स्थान पर न पहुंचे तो उसको इस प्रकारे का भी वाहन मिल सकता है जो उसके वांछित दूसरे अथवा तीसरे स्थान तक तो जाता हो पर वांछित चौथे स्थान तक न जाता हो। इस प्रकार की दशा में यात्री को दूसरे अथवा तीसरे स्थान तक रहना पडेगा। यह सब चित्त के एकाग्र न होने का फल है । एकाग्र चित्तके बिना की हुई इस प्रकार की क्रिया भी अप्रधान क्रिया है और वह द्रव्य क्रिया कही जाती है ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy