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________________ ॐ ही अहं नमः मूल-अर्थ-विवेचना महिता न्यायाचार्य-न्यायविशारदमहामहोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयगणि प्रणीता * जैन तर्क भाषा * प्रमाणपरिच्छेदः १. मूलम्-ऐन्द्रवृन्दनतं नत्वा, जिनं तत्त्वार्थदेशिनम् । प्रमाणन यनिक्षेपैस्तकभाषां तनोम्यहम् ।। विवेचना-उपाध्यायवरश्रीमद्यशोविजयनिमिताम् । __ तर्कभाषां यथामानं, व्याख्यामि सरल: पदः ।। ग्रंथकार महामहोपाध्याय श्री यशोविजय गणि ग्रंथ के आदि में मंगल करते हैं । 'ऐन्द्रवृन्दनतमिति' अनेक इन्द्र जिसको नमस्कार करते हैं । उस तत्त्वाथ का उपदेश करने वाले जिन को प्रणाम कर के प्रमाणनय और निक्षेप के द्वारा तर्कभाषा को करता है।। ___ इस स्तुति के द्वारा भगवान् जिनके अतिशय सूचित होते हैं। भगवान तत्वार्थ का उपदेश करते हैं। इससे वचनातिशय और ज्ञानातिशय प्रतीत होता है। भगवान् का ज्ञान तत्त्वज्ञान है उसमें अर्थों के स्वरुप का यथार्थ प्रकाशन है। जो तत्वभूत अर्थ हैं उनको जिनेन्द्र प्रकट करते हैं । एकांतवादी लोग अर्थों के जिस स्वरूप को स्वीकार करते हैं वह सत्य नहीं है। प्रमाण उसका उपपादन नहीं करते । जिन अपने ज्ञाना.
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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