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________________ तीनों काल अक्षणिकता को उत्पन्न नहीं करते। अर्थों में अनुगमसे युक्त द्रव्य और अनुगमसे रहित पर्याय का अनुभव होने पर भी एकान्तवाद का आश्रय लेकर बौद्ध क्षणिक पर्यायों के ज्ञान को सत्य मानता है और जो एक अनुगत द्रव्य प्रतीत होता है उसके ज्ञान को भ्रम कहता है दीप को ज्वाला जलती हुई चिरकाल तक एक प्रतीत होती है, परन्तु एक ज्वाला चिरकाल तक स्थिर नहीं रह सकती। जब तक तेल और बत्ती रहता है तब तक ज्वाला जलती है। तेल का नाश क्षण-क्षण में प्रत्यक्ष होता है इससे ज्याला का जन्म प्रतिक्षण सिद्ध होता है । जो ज्वाला प्रथम क्षण में उत्पन्न हुई उसके समान अन्य ज्वाला दूसरे क्षण में उत्पन्न हुई निरंतर समान ज्वालाओं के उत्पन्न होने के कारण वही एक ज्वाला जल रही है जो पहले जलती थी, इस प्रकार का भ्रम उत्पन्न हो जाता है ज्वालासे भिन्न कोई अनुगामी द्रव्य नहीं है । इसलिए क्षणिक पर्याय केवल है। परन्तु यह युक्त नहीं है। जितनी ज्वालाएँ उत्पन्न होती हैं उन सब में प्रकाशात्मक उष्ण तेज अनुगत रूप से प्रतीत होता है । ब्बाला की एकता भ्रान्त है पर तेज का अनुगत एक स्वरूप भ्रमस नहीं प्रतीत हो रहा है । यदि प्रथम क्षण में ज्वाला के पर्याय के साथ तेज द्रव्य भी नष्ट होजाय तो दूमरे हैं। क्षण में ज्वाला का नाश हो जाना चाहिए । अतः अनुगत तेज द्रव्य का प्रत्यक्ष एक ज्वाला के प्रत्यक्ष काल में भी सत्य है । जहाँ पर पट, पत्थर, लोहा आदि का स्थिर रूप में अनुभव होता है वहाँ भी ज्वाला के द्दष्टांत को लेकर केवल क्षणिक पर्यायों को मानना और स्थिर द्रव्य का निषेध करना अयक्त है । एकान्त रूपसे क्षणिक पर्यायों को स्वीकार करनेसे बौद्ध मत ऋजुपूत्राभास है। मूलम् – कालादिभेदेनार्थभेदमेवाभ्युपगच्छन् शब्दा
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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