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________________ ५७ जब अर्थ नष्ट हो जाता है तब नहीं दिखाई देता । जो अर्थ नहीं दिखाई देता उसका भी कोई अंश रहता है । कोई भी भावात्मक अर्थ किसी भी दशा में सर्वथा शून्य नहीं हो जाता । पहले मिट्टी का पिंड होता है पीछे ईंटें उत्पन्न होती हैं । ईंटों से भवन उत्पन्न होता है । ईंट का जब प्रत्यक्ष होता है तब इंट मिट्टी के साथ प्रतीत होती है । जब भवन दिखाई देता है तब भवन के साथ भी मिट्टी दिखाई देती है । जब केवल मिट्टी होती है तब न ईंट होती है और न भवन । भवन का यदि नाश हो जाय तो भी मिट्टी का प्रत्यक्ष भस्म के रूप में होता है । ईंट-भवन - और भस्म का प्रत्यक्ष सदा नहीं होता, किन्तु मिट्टी का प्रत्यक्ष इन सब अवस्थाओं में होता है । जिसका प्रत्यक्ष सब अवस्थाओं में है वह अनुगत है और अनुगत रूप से न रहने वाले पर्यायों से भिन्न भी है। पर्याय इस अनुगत अर्थ के बिना नहीं प्रतीत होते इसलिए पर्याय अनुगत अर्थ से अभिन्न भी हैं। इस प्रकार द्रव्य और पर्याय दोनों का ज्ञान होता है । पर्यायों के उत्पन्न और नष्ट होने पर भी अनुगतद्रव्य रूप अर्थ की स्थिति रहती है । अनुगत रूप से रहने के कारण द्रव्य अक्षणिक है और पर्यायों के साथ अभेद के होने के कारण क्षणिक है । इस प्रकार द्रव्य क्षणिक भी हैं और अक्षणिक भी। इसी प्रकार पानी में जब वर्षा की बूंदों के कारण बुद-बुद उत्पन्न होते हैं तब पहला बुदबुद नष्ट होता है और दूसरा बुदबुद उत्पन्न होता है | जब तक वर्षा वेग से होती रहती है तब तक बुदबुद उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं। जब वर्षा बन्द हो जाती है तब बुदबुदों की उत्पत्ति नहीं होती, केवल पानी रह जाता है। पहले पानी रहता है, जब बुदबुद होते हैं तब भी पानी रहता है और जब बुदबुद नष्ट हो जाते हैं तब भी पानी रहता है । बुद-बुद पर्याय हैं और पानी द्रव्य है इस प्रकार के पर्याय द्रव्य के आकार से कभी अल्प अंश में और कभी अधिक अंश में भिन्न होते हैं । आकार में भेद होने
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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