SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भङ्ग प्रकट होता है। तृतीय भङ्ग स्यात अवक्तव्य है वह इन तीनों नयोंका आश्रय लेकर प्रकट होता है। लिंग के भेद से अर्थ भिन्न हो जाता है इसलिए घट किसी एक शब्द के द्वारा वाच्य नहीं है अतः स्यात् अवक्तव्य है। पर्याय के भेद से अर्थ भिन्न है इसलिए एक शब्द भिन्न अर्थ का वाचक नहीं अतः समभिरूढ नयके अनुसार घट स्यात अवक्तव्य है। क्रिया के भेद से अर्थ भिन्न हो जाता है अतः एवभूते नयके अनुसार घट स्यात् अवक्तव्य है । स्यात् अस्ति एवं और स्यात् नास्ति एवं इन प्रथम और द्वितीय भङ्गों के संयोग से स्यात अस्ति स्यात् नास्ति यह चतुर्थे भङ्ग प्रकट होता है। प्रथम द्वितीय और चतुर्थ भंङ्गों के साथ स्यात् अवक्तव्य इस तृतीय भङ्ग का संयोग होने पर पंचम षष्ठ और सप्तम भङ्ग प्रकट होते हैं। इनमें से प्रथम के साथ तृतीय अवक्तव्य भङ्ग का संयोग होने पर पाँचवां, द्वितीय भंग के साथ अवस्तव्य का संयोग होने पर छठा, चतुर्थ के साथ अवक्तव्य का संयोग होने पर सातवाँ भङ्ग प्रकट होता है। ___अन्य अनेक रीतियों से भी नयके वाक्य सप्तम्ङ्गी को प्रकट करते हैं। ___नयों पर आश्रित सप्तभङ्गी के प्रसिद्ध होने पर प्रमाण सप्तभङ्गी से इसके भेद की जिज्ञासा होती है। मति आदि ज्ञान ज्ञानात्मक होने पर स्वार्थ हैं। शब्दात्मक होने पर परार्थ हैं। मति आदि के प्रतिपादक शब्द के अनुसार भी सप्तभङ्गो इसी आकार की होती है। आकार के समान होने पर एक के प्रमाण सप्तभङ्गी और अन्य के नय सप्तभङ्गी होने का कारण क्या है ? इस शंका के उत्तर में उपाध्याय जी कहते हैं नय वाक्य पर आश्रित सप्तभङ्गी विकलादेश है और प्रमाण सप्तभङ्गी सकलादेश है इस कारण दोनों में भेद है। जब काल आदि के द्वारा अनेक धर्मों का अभेद करके वस्तु का
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy