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________________ २५ द्वारा प्रतीत होनेवाली क्रिया को गौण मानकर और जाति गुण आदि को प्रधान मानकर व्यवहार करते हैं । निश्चय नय के अनुसार विचार करने पर सभी शब्दों में क्रिया विद्यमान है । इस रीति से एवंभूत नय सभी शब्दों को क्रिया शब्द कहता है । मूलम्:- एतेष्वाद्याश्चत्वारः प्राधान्येनार्थगोचरत्वादर्थनयाः अन्त्यास्तु त्रयः प्राधान्येन शब्द गोचरत्वाच्छन्दनयाः । अर्थः- इन सात नयों में आदि के चार प्रधान रूप से अर्थ के विषय में हैं इसलिए अर्थ नय हैं और अंतिम तीन मुख्य रूप से शब्द के विषय में हैं इसलिए शब्दनय हैं । -- • विवेचना:- नय श्रुत प्रमाण के भेद हैं । अर्थों में अनेक प्रकार के धर्म हैं । द्रव्य आदि की अपेक्षा से किसी धर्म को मुख्य रूप से और किसी को गौण रूप से नय प्रतिपादित करते हैं। कोई नय, विशेष के होने पर भी केवल सामान्य का प्रतिपादन करते हैं। कोई केवल विशेष का । अपेक्षा के भेद से शब्दों द्वारा निरूपण नयों का मुख्य कार्य है । इस कारण सातों नय शब्द के साथ सम्बन्ध रखते हैं । उनके द्वारा जो ज्ञान होता है वह शब्द से उत्पन्न होता है । वृक्ष में फूल हैं । जिस प्रकार वृक्ष की सत्ता है इसी प्रकार फूलों की भी । फूल ही नहीं शाखा, पत्र, मूल आदि की भी समान सत्ता है पर जब हम गौण और मुख्य भाव से कहते हैं तब नैगम नय हो जाता है । इस प्रकार से वक्ता के कहने की इच्छा नैगम नयका मूल है । अर्थ सामान्य रूप भी है और विशेषरूप भी । जब भेद की उपेक्षा करके अभिन्न स्वरूप से कहने की इच्छा होती है, तब संग्रह नय प्रकट होता है । जब सामान्य रूप की उपेक्षा करके भेद के प्रकट करने की इच्छा होती है तब व्यवहार नय का उदय होता है । जब तीनों कालों के साथ सम्बन्ध होने पर भी वर्तमान काल की
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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