SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 478
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थों का भेद निश्चित होता है । वृक्ष और पत्थर, भूमि और सूर्य भिन्न हैं इस तत्त्वका निश्चय ज्ञान के भेद पर आश्रित है। यदि इन समस्त अर्थों का ज्ञान एक रूपमें हो, तो अर्थों के स्वरूपका भेद निश्चित नहीं हो सकता। शब्द जब काल के भेदसे अर्थको प्रकट करते हैं तब भी ज्ञानका स्वरूप भिन्न होता है, इस लिए कालके भेदसे अर्थ में भी भेद मानना चाहिए-यह शब्द नयका मत है। इसी प्रकार जब घडे को बनाता है इस प्रकार कहते हैं तब घडे का कर्ता प्रधान रूप से प्रतीत होता है और घट अप्रधान रूपसे प्रतीत होता है। इसके विरुद्ध जब घडा बनाया जा रहा है, इस प्रकार कहते हैं तब घट प्रधान रूपसे प्रतीत होता है और कर्ता अप्रधान रूपसे । प्रधान और अप्रधान रूपोंका भेद आवश्यक है । स्त्री, पुरुष और नपुंसक का भेद प्राणियों में स्पष्ट है । जब एक अर्थ को स्त्रीलिंग पुल्लिंग अथवा नपुंसकलिंग शब्दसे कहते है तब अर्थ एक आकार का प्रतीत होने पर भी भिन्न स्वरूप में प्रतीत होता है इसलिए वहां भी प्रतीति के अनुसार अर्थका भेद है। उपसों के भेदसे अनेकबार परस्पर विरोधी अर्थों का ज्ञान होता है । गच्छति कहनेसे जाना प्रतीत होता है और आगच्छति से आना । जाना और आना भिन्न अर्थ हैं। 'आ' उपसर्ग जिस प्रकार भिन्न अर्थ को प्रकट करता है इस प्रकार अन्य उपसर्ग भी भिन्न अर्थों को प्रकट करते हैं। ___ऋजु सूत्र के समान शब्द नयभी वर्तमानकाल के अर्थका ज्ञान उत्पन्न करता है। परन्तु शब्द जिस प्रकार कारक आदि के भेदसे अर्थके भेदको प्रकाशित करता है इस प्रकार ऋजुसूत्र नहीं करता। कारक आदि के भिन्न होने पर भी ऋजुसूत्र के अनुसार अर्थमें भेद नहीं होता । वर्तमान काल में अर्थका जो स्वरूप प्रतीत होता है, वह कारक आदिके भिन्न होने पर भी अभिन्न रहता है, इस कारण ऋजुसूत्र और शब्द नयका भेद है। शब्द नयको साम्प्रत भी कहते हैं। 'संप्रति' वर्तमान कालका
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy