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________________ १६ का है - अणु और स्कंध । धर्मास्तिकाय, जीव और पुद्गलों की गति में हेतु है । अधर्मास्तिकाय जीव और अजीव की स्थिति में हेतु है। ___ इसी प्रकार पर्याय दो प्रकार का है । क्रम भावी और सहभावी । क्रमभावी भी दो प्रकार का है - क्रिया रूप और अक्रिया रूप। इस प्रकार अनेक अवान्तर भेद हो सकते हैं। मूलम:- ऋजु वर्तमानक्षणस्थायिपर्यायमात्रं प्राधान्यतः सूचरन्नभिप्राय ऋजुसूत्रः। __ अर्थः- ऋजु अर्थात् वर्तमान क्षण में स्थिर रहने वाले पर्याय को प्रकाशित करनेवाला अभिप्राय ऋजु सूत्र है। विवेचनाः- वस्तु के पर्याय प्रतिक्षण उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं। जब एक पर्याय वर्तमान होता है तब पूर्वकालके पर्याय अतीत होते हैं और उत्तर कालके पर्याय अनागत होते हैं। यह नय प्रधान रूपसे वर्तमान पर्याय का बोध कराता है। अतीत और अनागत पर्यायों की उपेक्षा करता है। इसी प्रकार तीनों कालों में रहने वाले द्रव्यकी भी उपेक्षा करता है। मूलम्:- यथा सुखविवर्तः सम्प्रत्यस्ति । अत्र हि क्षणस्थायि सुखाख्यं पर्यायमानं प्राधान्येन प्रदर्यते. तदधिकरणभृतं पुनरात्मद्रव्यं गौणतया नाप्यंत इति । अर्थः- जिस प्रकार इस काल में सुख पर्याय है। यहां पर एकक्षण में रहनेवाला सुख नामक पर्याय प्रकाशित किया गया है परन्तु उसके अधिकरण आत्मद्रव्य की विवक्षा गौण होने के कारण नहीं की है। विवेचनाः-द्रव्य के बिना पर्याय नहीं रह सकता। इस लिए जब सुख है तब सुख दुःख आदि समस्त पर्यायों में रहने वाला
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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